आजकल देश का सबसे बड़ा जेल यानि कि तिहाड़ जेल हाई-प्रोफाइल नेताओं का अड्डा बन गया है. इस जेल में करुणानिधि की बेटी कनिमोरी समेत ए राजा, मधु कोड़ा, कल्माड़ी और भी कई हाई प्रोफाइल लोग बंद हैं. यह सब अलग-अलग घोटालों और विवादों में बंद हैं पर एक बात सबमें समान है और वह है इनकी बीमारी. इनमें से अधिकतर ने अपनी बीमारी का ही हवाला देकर रिहाई की मांग की है.
अभी कुछ दिनों पहले अमरसिंह भी नोट कांड में बुरे फंसे थे पर उन्होंने भी अपनी बीमारी के दम पर जमानत ले ली. कनिमोरी और ए राजा भी समय-समय पर अपनी बिगड़ती तबियत का हवाला दे जमानत की मांग कर रहे हैं पर कोर्ट मानने को तैयार नहीं है. अभी हाल ही में बॉलीवुड फिल्म निर्माता करीम मोरानी ने भी अपनी बिगड़ती सेहत को आगे रख जमानत की मांग की थी पर इस पर दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति वीके शाली ने कहा कि, ‘प्रत्येक व्यक्ति हिरासत में लिए जाने पर ही बीमार क्यों पड़ जाता है’?
अब बताइए यह सवाल तो खुद कोर्ट ने ही पूछ डाला. यह बात किसी से नहीं छुपी कि जेल की काल-कोठरी से कुछ समय तक बचने के लिए हाई प्रोफाइल लोग अपनी सेहत का दामन थामते हैं. ऐसे लोग स्वस्थ होने के बाद भी अत्यधिक बीमार होने का ढोंग करते हैं और फिर पैसा आदि देकर जमानत पर मजे उड़ाते हैं. लेकिन ऐसे लोगों के खिलाफ कोर्ट कभी सख्त नहीं होता. वजह मानवाधिकार. भारतीय कोर्ट किसी भी अपराधी को स्वास्थ खराब होने की स्थिति में जेल में नहीं रखता बल्कि सरकारी खर्चे पर उसका इलाज करवाता है. लेकिन जिस इंसानियत से कोर्ट जेल में बंद कैदियों को बीमार होने पर अस्पताल भेजता है उसको अब लोगों ने हथियार बना लिया है. अब ट्रेंड है जेल में बीमार पड़ो और जमानत लो.
अगर हाल की बात की जाए तो झारंखड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को पेट में तकलीफ के बाद अपोलो अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. आय से अधिक संपत्ति के मामले में उनके खिलाफ जांच चल रही थी. लेकिन अब वह फिर से जेल में ही चले गए हैं. हो सकता है जब उनका बाहर आने का मन करे तो फिर उन्हें कोई बड़ी बीमारी हो जाए.
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को भी जेल की हवा खास रास नहीं आई. इसीलिए सीने में दर्द करवाकर वह भी अस्पताल के मजे लूटने लगे.
हद तो तब हो गई जब नोट कांड के फंसे अमरसिंह को बीमारी की वजह से जमानत भी मिल गई. किडनी सम्बंधी समस्या की वजह से उन्हें एम्स में भर्ती करवाया गया था और इसी के बल पर उन्हें जमानत भी मिल गई.
लेकिन यह खेल क्या कोर्ट को नजर नहीं आता या नजर आने के बाद भी वह मौन है. अगर यही ट्रेंड हर गुनहगार अख्तियार करने लगा तो हो सकता है कभी अस्पतालों में आम बीमार लोगों की तुलना में गुनहगारों की संख्या ज्यादा हो.
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