डार्विन ने अपने क्रमिक विकास के सिद्धांत के अंतर्गत यह बातें कहीं तो दुनिया उनकी दीवानी हो गई. डार्विन ने इंसान के भीतर छुपे जानवर को वैज्ञानिक मान्यता दे दी थी. अब इंसान बिना किसी नैतिक बंधन के अपने भीतर के जानवर को खुला छोड़ सकता है. क्योंकि विज्ञान के अनुसार इंसान भी एक जानवर है इसलिए वह कमजोर को या फिर जो अल्पसुविधा प्राप्त है उन्हें कुचलकर आगे बढ़ सकता है. इसमें इंसान का क्या दोष, डार्विन बाबा ने ही कहा है यह तो प्रकृति का नियम है. पर इंदौर की एक गाय शायद डार्विन के सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट के सिद्धांत से इत्तेफाक नहीं रखती.
इस गाय की कोशिश है कि कमजोर से कमजोर को भी जीने का बराबर अवसर मिले. इंसान जहां अपने सगे संबंधियों को मुश्किल वक्त में पहचानने से इंकार कर देते हैं वहीं यह गाय अपनी प्रजाती से भी आगे बढ़कर आवारा कुत्तों को दूध पिलाती है.
गौरतलब है कि सर्दियों में ही कुत्तों का प्रजनन होता है. इस कड़ाके की सर्दी में कुतिया वैसे तो कइ पिल्लों को जन्म देती है पर ठंड की मार केवल कुछ पिल्ले ही सह पाते हैं. अक्सर वही पिल्ले बचते हैं जिन्हें स्तनपान के लिए आगे के स्तन मिलते हैं. चूकि आवारा घूमने वाली कुतियों को अच्छी खुराक नहीं मिल पाती इस कारण उनके स्तनों में दूध का उचित मात्रा में प्रवाह नहीं हो पाता. अक्सर जिन पिल्लों को पीछे के स्तन मिलते हैं उन्हें नाम मात्र का ही दूध मिलता है. बिना उचित खुराक के दिसंबर, जनवरी की ठंड झेलना मुश्किल होता है और ये पिल्ले जवान होने से पहले ही मौत की मुंह में चले जाते हैं.
इस सर्द मौसम में इन कुत्तों का दर्द शायद मध्य प्रदेश के इंदौर की गलियों में घूमने वाली इस गाय से बेहतर कोई नहीं समझ सकता. यही वजह है कि यह गाय घूम-घूमकर उन कुतियों को अपने स्तन का दूध पिलाती है जिन्होंने हाल-फिलहाल में बच्चे को पैदा किए हैं. अगर कुतियों को अच्छी खुराक मिलती है तो उनके स्तन में दुग्ध प्रवाह भी अच्छा होता है जिससे अधिक पिल्लों के बचे रहने की संभावना बनती है.
Read: बड़े अरमानों से विदा हुई वो फिर किसने पहुंचाया उसे मौत के अंजाम तक?
अपनी इस आदत के कारण इस गाय की चर्चा क्षेत्रभर में हो रही है. मनुष्य ने तो महावीर के जियो और जीने दो के सिद्धांत को डार्विन से बहुत पहले ही भूला दिया था पर यह गाय अपनी इस खास आदत से इंसानों को इंसानियत की नई सीख दे रही है. Next..
Read More:
Read Comments