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लोकतंत्र की स्याही

एक समय था जब विदेशों में ही हमें चप्पल-जूते फेंकने की घटनाएं देखने और सुनने को मिलती थीं लेकिन हाल के सालों में यह प्रथा भारत में भी तेजी से फैल रही है. पहले चिदंबरम पर जूता फेंका गया फिर अन्य नेताओं को भी जूता-दर्शन कराए गए. हद तो तब हो गई जब शरद पवार जी को चप्पल और जूतों से आगे बढ़कर चांटे और घूसों के दर्शन कराए गए. और अब ताजा मामला आया है स्याही से मुंह काला करने की प्रथा का.


babaramdevइस नई “प्रथा” का पहला शिकार बने हैं योग गुरू. दिल्ली में 14 जनवरी को आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान एक युवक ने उनके मुंह के ऊपर काली स्याही फेंक दी. इस घटना के बाद वहां उपस्थित बाबा रामदेव के समर्थकों ने उस युवक की जमकर पिटाई की जिसके बाद उसे पुलिस ने हिरासत में ले लिया गया है.


इस पूरी घटना में रामदेव का तो “मुंह काला” हो गया पर उन्होंने अपना मुंह बंद नही किया. उन्होंने इस आरोपी को कांग्रेस का सहयोगी बताया और मीडिया में भी खूब जोरदार ढंग से विरोध किया. अब रामदेव जी को कौन समझाए कि जो सरकार इन्हें रात के बारह बजे रामलीला मैदान से मार-मारकर भगा सकती है वह कुछ भी कर सकती है.


लेकिन जनता में इतना आक्रोश क्यों ?

हाल ही में हुई कुछेक घटनाओं के बाद यह लगने लगा है कि अब आम आदमी भी गुस्से से भर गया है और वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है. शरद पवार को जब थप्पड़ मारा गया था तो उस वक्त भी जनता के अंदर आक्रोश भरा हुआ था. जिस व्यक्ति ने शरद पवार को थप्पड़ मारा वह भी एक आम आदमी ही था.


कुल मिलाकर देखा जाए तो यह तो जूता फेंकने, चप्पल मारने या हाथापाई करने की घटनाएं हैं उनसे देश को कोई खास फायदा नहीं होने वाला. ऐसी घटनाएं कुछ समय के लिए तो मीडिया का ध्यान खींच सकती हैं पर उसका कोई दूरगामी प्रभाव नहीं होता.

Journey of Baba Ramdev.


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