अन्ना हजारे के 12 दिन के अनशन ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. आनन-फानन में सरकार ने अन्ना हजारे की सभी शर्तें मान ली. देश की राजधानी में अन्ना हजारे के अनशन में लाखों लोग शामिल हुए. मीडिया से लेकर बॉलिवुड तक इस हॉट मामले से दूर नहीं रहे. पल-पल की खबर टीवी पर सुबह से शाम तक दिखाई जा रही थी. लेकिन इसी दौरान सबकी आंखों और खबरों से वह इंसान क्यूं दूर रह गई जिसने पिछले 10 से भी ज्यादा सालों से अनशन किया हुआ है. जी हां, 10 सालों से भी ज्यादा लंबे अनशन के बाद मणिपुर की आयरन लेडी इरोम चानू शर्मिला ( Irom Chanu Sharmila) के हौसले आज भी उसी तरह बुलंद हैं जैसे अपने अनशन के शुरुआती समय में थे.
2 नवंबर, 2000 से वह मणिपुर में आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट, 1958, जिसे सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (Armed Forces Special Powers Act, 1958) भी कहा जाता है, को हटाए जाने की मांग पर अनशन करने के लिए बैठी हुई हैं. इस एक्ट के तहत मणिपुर में तैनात सैन्य बलों को यह अधिकार प्राप्त है कि उपद्रव के अंदेशे पर वे किसी को भी जान से मार दें और इसके लिए किसी अदालत में उन्हें सफाई भी नहीं देनी पड़ती है. साथ ही सेना को बिना वॉरंट के गिरफ़्तारी और तलाशी की छूट भी है. 1956 में नगा विद्रोहियों से निबटने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा पहली बार सेना भेजी गई थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने संसद में बयान दिया था कि सेना का इस्तेमाल अस्थाई है तथा छह महीने के अन्दर सेना वहां से वापस बुला ली जाएगी. पर वास्तविकता इसके ठीक उलट है. सेना समूचे पूर्वोत्तर भारत के चप्पे-चप्पे में पहुंच गई. 1958 में ‘आफ्सपा’ लागू हुआ और 1972 में पूरे पूर्वोत्तर राज्यों में इसका विस्तार कर दिया गया. 1990 में जम्मू और कश्मीर भी इस कानून के दायरे में आ गया. आरोप है कि इसकी आड़ में वहां उपस्थित सेना ने कई हत्याएं और बलात्कार जैसे अपराधों को अंजाम दिया है. जरा-सा भी शक होने पर बिना कार्यवाही किए नागरिकों को मार दिए जाने के कई केस सामने आए पर हमेशा इस एक्ट ने सैनिकों को बचा लिया.
इरोम चानू का जन्म 14 मार्च, 1972 को मणिपुर में हुआ था. कविता और पाठन की शौकीन चानू एक बेहतरीन लेखिका भी हैं. 29 साल की उम्र में उनके साथ एक ऐसी घटना घटी जिसने उनकी जिंदगी ही बदल डाली. 1 नवंबर, 2000 को एक बस स्टैंड के पास दस लोगों को सैन्य बलों ने गोलियों से भूनकर मार डाला था. इस कांड की इरोम शर्मिला प्रत्यक्षदर्शी थीं. इस घटना का विरोध करते हुए 29 वर्षीय इरोम चानू ने 2 नवंबर से ही अनशन शुरू कर दिया. उनकी मांग थी कि मणिपुर से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को हटाया जाए. हालांकि अनशन के चार दिन बाद ही 06 नवंबर को उन्हें “आत्महत्या करने के प्रयास” के जुर्म में गिरफ़्तार किया गया और धारा 309 लगा दिया गया. 20 नवंबर, 2000 को उन्हें जबरन नाक में पाइप डाल कर तरल पदार्थ दिया गया था. इसके बाद ही इरोम चानू को बार-बार पकड़ा और रिहा किया जाता रहा है. पुलिस हर 14 दिन में हिरासत बढ़ाने के लिए अदालत ले जाती है. धारा 309 के अनुसार पुलिस किसी को भी एक साल से ज्यादा जेल में कैद नहीं रख सकती इसलिए साल के पूरे होने से पहले दो-तीन दिन के लिए उन्हें छोड़ दिया जाता है फिर पकड़कर जेल में ठूंस दिया जाता है.
इरोम चानू अभी तक अपने मकसद में कामयाब तो नहीं हो पाई हैं लेकिन उन्होंने दो वर्ल्ड रिकॉर्ड जरूर बनाए हैं. पहला सबसे अधिक दिनों तक भूख हड़ताल करने का और दूसरा सबसे ज्यादा बार जेल जाकर रिहा होने का. इस कानून को वापस लेने की मांग के चलते शर्मिला को कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार हासिल हो चुके हैं और विभिन्न सामाजिक संगठनों तथा नेताओं ने उन्हें समर्थन दिया है.
क्यूं नहीं दे रहे चानू पर ध्यान
एक औरत पिछले दस सालों से भी ज्यादा समय से अनशन पर है लेकिन मीडिया उसकी तरफ देख भी नहीं रहा है. इसकी वजह क्या है? क्या इसकी वजह यह है कि वह एक महिला हैं या फिर उनके पास अन्ना हजारे और उनकी टीम की तरह सशक्त शख्सियतें नहीं है. हमारे देश में मीडिया उन्हीं चीजों और मुद्दों पर प्रकाश डालती है जो बिकता है. मणिपुर मुख्यधारा से एक अलग राज्य माना जाता है. ऐसे में वहां के लोगों के लिए आवाज उठाने वाली इरोम चानू को शायद ही लोग न्यूज चैनलों पर देखना पसंद करें.
साथ ही जिस एक्ट को इरोम चानू हटाने की मांग कर रही हैं वह बहुत ही विवादास्पद है. इसके विरोध में कश्मीर से लेकर पूरे पूर्वोत्तर राज्यों में आवाज उठी है पर यह भी सच है कि इस एक्ट के बिना इन राज्यों की हालत बहुत गंभीर हो सकती है. सीमा पर होने और मुख्य धारा से अलग होने की वजह से चीन और पाकिस्तान जैसे देश हमेशा इन राज्यों पर पकड़ बनाने के लिए नजर बनाए रखते हैं. अगर यहां से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून हटा दिया गया तो हो सकता है यह राज्य देश से अलग हो जाएं और आतंकवादी यहां अपना गढ़ बना लें.
पर चाहे कुछ भी इस समस्या का कोई तो समाधान खोजना ही होगा. वरना यह राज्य कब तक सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून की आड़ में सेना का शोषण सहेंगे. आज एक चानू खड़ी हैं कल को हो सकता है कई सौ खड़ी हो जाएं. ऐसे में जरूरी है कि आग लगने से पहले ही कुएं खोद लिए जाएं. साथ ही इरोम चानू के संघर्ष को सम्मान देते हुए देश के शीर्ष नेताओं को उनसे मिलना चाहिए और समझाना चाहिए.
Photo Courtesy: Google
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