देश के बेहतरीन विश्वविद्यालयों में से एक राजधानी स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में दीक्षांत समारोह नहीं होता। हो सकता है कि यह जानकर आश्चर्य हो, लेकिन यह सत्य है। जेएनयू के इतिहास में अभी तक सिर्फ एक बार 1972 में दीक्षांत समारोह हुआ है। समारोह के मुख्य अतिथि जाने-माने अभिनेता बलराज साहनी थे। 28 अप्रैल, 1969 को स्थापित इस विश्वविद्यालय का 1972 में पहला दीक्षांत समारोह था और किसी वजह से वह आखिरी भी बना हुआ था। मगर अब यह इतिहास बदल जाएगा। 46 वर्षों बाद जेएनयू प्रशासन ने एक बार फिर दीक्षांत समारोह शुरू करने का फैसला लिया है। आइये आपको बताते हैं कि आखिर क्यों एक बार के बाद ही दीक्षांत समारोह बंद कर दिया गया था और अब जेएनयू प्रशासन इसे किस तरह शुरू कर रहा है।
19 सदस्यीय समिति का गठन
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जेएनयू के कुलपति एम जगदीश कुमार ने दीक्षांत समारोह के सफल संचालन के लिए विश्वविद्यालय के रेक्टर-2 प्रोफेसर एससी गारकोटी की अध्यक्षता में 19 सदस्यीय समिति का गठन किया है। इसकी पुष्टि करते हुए प्रोफेसर गारकोटी ने बताया कि विश्वविद्यालय फरवरी या मार्च में अपना दूसरा दीक्षांत समारोह आयोजित करेगा। इस साल केवल पीएचडी करने वालों को ही समारोह में शामिल किया जाएगा, लेकिन अगले साल से इसका विस्तार होगा। विश्वविद्यालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि जिन विद्यार्थियों ने 2017 की 1 जनवरी से 31 दिसंबर के बीच पीएचडी पूरी की है, वे जेएनयू की वेबसाइट पर जाकर कार्यक्रम के लिए अपना पंजीकरण करा सकते हैं। खबरों की मानें, तो अभी तक समारोह के मुख्य अतिथि के बारे में कोई फैसला नहीं हो पाया है।
एक भाषण था रोक का कारण!
जेएनयू में 46 वर्षों से दीक्षांत समारोह आयोजित न होने का कारण पहले दीक्षांत समारोह में मंच से तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष वीसी कोशी का सरकार विरोधी भाषण बना था। खबरों में मानें, तो 1972 में जब कार्यक्रम आयोजित करने का फैसला हुआ, तो छात्रसंघ ने मांग की थी कि उनके नेता को भी मंच पर बोलने का मौका दिया जाए। बताया जाता है कि छात्रसंघ की यह मांग एक शर्त के साथ मान ली गई थी। शर्त यह थी कि छात्रनेता अपने भाषण में वही बात कहेंगे, जिसकी पूर्व मंजूरी विश्वविद्यालय प्रशासन देगा।
भाषण में तत्कालीन सरकार की आलोचना
बताया जाता है कि माकपा की छात्र इकाई स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की ओर से अध्यक्ष बने वीसी कोशी ने मंच पर वह नहीं बोला, जिसकी अनुमति उन्हें दी गई थी। उन्होंने अपने भाषण में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार की जमकर आलोचना की। कहा जाता है कि अखबारों में यह मसला जमकर उठने के बाद सरकार ने इस कार्यक्रम को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित रखने का फैसला लिया था। अब साढ़े चार दशक बाद यह अनिश्चितकाल खत्म होने जा रहा है…Next
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