तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। पांच जजों की बेंच ने 3-2 के बहुमत से तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया। पांच जजों की बेंच में चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अब्दुल नज़ीर शामिल रहे। आइये जानते हैं इन पांचों न्यायाधीशों के बारे में, जिन्होंने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
1. जस्टिस जेएस खेहर
जस्टिस जगदीश सिंह खेहर (जेएस खेहर) भारत के मुख्य न्यायाधीश हैं। उन्होंने 04 जनवरी 2017 को देश के 44वें मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली थी। वे सिख समुदाय से उच्चतम न्यायालय के प्रथम न्यायाधीश हैं। 28 अगस्त 1952 को जन्मे खेहर ने 1974 में चंडीगढ़ के राजकीय कॉलेज से विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। सन् 1977 में पंजाब विश्वविद्यालय से विधि में स्नातक और 1979 में एलएलएम की उपाधि प्राप्त की। विश्वविद्यालय में अच्छे प्रदर्शन के लिए इन्हें स्वर्ण पदक भी मिला था। 1979 में ही खेहर ने वकालत शुरू की। इन्होंने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट तथा उच्चतम न्यायालय में वकालत की। खेहर को 1992 में पंजाब में अतिरिक्त महाधिवक्ता नियुक्त किया गया। 1995 में वरिष्ठ एडवोकेट बने। खेहर 29 नवम्बर 2009 से 7 अगस्त 2010 तक उत्तराखंड हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रहे। 08 अगस्त 2010 से 12 सितम्बर 2011 तक कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे। 13 सितम्बर 2011 से 03 जनवरी 2017 तक उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश थे। इसके बाद 04 जनवरी 2017 को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद ग्रहण किया।
2. जस्टिस कुरियन जोसेफ
जस्टिस कुरियन जोसेफ का जन्म 30 नवंबर 1953 को हुआ था। इन्होंने केरल लॉ एकेडमी, त्रिवेन्द्रम से पढ़ाई पूरी की। जोसेफ ने 1979 में अपना कानूनी कॅरियर शुरू किया। वे 1977 से 1978 तक केरल विश्वविद्यालय के शैक्षणिक परिषद के सदस्य रहे। 1978 में केरल विश्वविद्यालय संघ के महासचिव थे। 1983 से 1985 तक कोचीन विश्वविद्यालय के सीनेट सदस्य रहे। 2006 से 2008 तक केरल न्यायिक अकादमी के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया। इसके अलावा 2006 से 2009 तक केरल उच्च न्यायालय के कानूनी सेवा समिति के अध्यक्ष के रूप में काम किया। इन्होंने 1987 में सरकारी वकील के रूप में कार्य किया और 1994 से 1996 तक अतिरिक्त एडवोकेट जनरल रहे। जोसफ को 1996 में वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया। सन् 2000 में इन्हें केरल उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। फरवरी 2010 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने। 8 मार्च 2013 को जोसेफ सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने।
3. जस्टिस आरएफ नरीमन
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन का जन्म 13 अगस्त 1956 को हुआ था। एक न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत होने से पहले उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ वकील के रूप में अभ्यास किया। 23 जुलाई 2011 को उन्हें भारत का सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया था। इन्होंने बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य के रूप में भी कार्य किया है। 1993 में इन्हें 37 वर्ष की आयु में वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया था। नरीमन ने श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से बीकॉम किया। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि विज्ञान संकाय से एलएलबी की, जहां वे बैच में दूसरे स्थान पर रहे। इसके बाद वे एलएलएम के लिए हार्वर्ड लॉ स्कूल गए। जस्टिस नरीमन भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में सेवा देने वाले हार्वर्ड के पहले छात्र हैं।
4. जस्टिस यूयू ललित
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश उदय उमेश ललित न्यायाधीश के रूप में सेवा देने से पहले सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ वकील के रूप में अभ्यास करते थे। ललित का जन्म 9 नवंबर 1957 को यूआर ललित के यहां हुआ था, जो एक क्रिमिनल लॉयर थे और बाद में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किया गया था। 2014 में मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अगुवाई वाली सर्वोच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के लिए ललित के नाम की सिफारिश की थी। 13 अगस्त 2014 को ललित को राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया।
5. जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर
जस्टिस एस अब्दुल नजीर का जन्म 5 जनवरी 1958 को कर्नाटक के मूडाबिदरी में हुआ था। नज़ीर ने 1983 में कर्नाटक उच्च न्यायालय में वकील के रूप में नामांकन किया और अभ्यास किया। मई 2003 में उन्हें कर्नाटक उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किया गया। नजीर शायद तीसरे न्यायाधीश हैं, जो उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले सीधे सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनाए गए। नजीर ने 17 फरवरी 2017 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पदभार ग्रहण किया।
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