तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को असंवैधानिक करार दे दिया. इस फैसले को लेकर हर ओर चर्चा हो रही है. ज्यादातर लोग फैसले की सराहना कर रहे हैं. हर व्यक्ति अपने हिसाब से इसका विश्लेषण कर रहा है. राजनीतिक गलियारे भी इससे अछूते नहीं हैं. इस फैसले को परोक्ष रूप से केंद्र सरकार को राजनीतिक लाभ मिलने से भी जोड़ा जा रहा है. राजनीति के दिग्गज अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं. मगर तलाक से जुड़ी कुछ ऐसी बातें भी हैं, जिस पर शायद कहीं भी चर्चा नहीं हुई. सुप्रीम कोर्ट ने 395 पन्नों के फैसले की शुरुआत में ‘तलाक’ शब्द, उसके मायने और उसके तरीकों के बारे में बताया. कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत को असंवैधानिक करार दिया है, लेकिन दो तलाक और हैं, जिनके बारे में अब तक कोई बात नहीं हुई है. खास बात यह है कि कोर्ट ने फैसले में इन दो तलाकों के बारे में जिक्र भी किया.
तलाक-ए-एहसन : इसके तहत पति जब पत्नी को एक बार ही तलाक कह दे, तो वो तलाक माना जाता है. इसके बाद इद्दत का वक्त शुरू हो जाता है. इद्दत का समय 90 दिनों का होता है. इस दौरान पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध नहीं बनते. अगर इन 90 दिनों के दौरान पति-पत्नी संबंध बना लेते हैं, तो तलाक अपने आप खारिज हो जाता है. यानी तलाक-ए-एहसन को घर पर ही पलटा जा सकता है. कोर्ट ने लिखा है कि मुस्लिम समाज के बीच तलाक-ए-एहसन को सबसे सही तरीका समझा जाता है.
तलाक-ए-हसन : इसमें तलाक-ए-एहसन के उलट तीन बार तलाक कहा जाता है. मगर ये तीन बार तलाक, तलाक, तलाक… एक साथ न होकर तीन महीनों के दौरान कहा जाता है. पहले महीने तलाक कहने के बाद ही पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध नहीं बन सकते. मगर पहला महीना खत्म होने से पहले अगर दोनों में समझौता हो जाता है और संबंध बन जाते हैं, तो तलाक रद्द मान लिया जाता है. वहीं, यदि संबंध नहीं बनते और पति दूसरे व तीसरे महीने में भी तलाक बोल देता है, तो तलाक हो जाता है. कोर्ट ने लिखा कि तलाक-ए-हसन की मान्यता मुस्लिम समाज में तलाक-ए-एहसन से तो कम है, फिर भी इसे ठीक समझा जाता है.
तलाक-ए-बिद्दत : यह वह तरीका है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है यानी तीन तलाक या एक साथ तीन तलाक. इसे दो तरह से दिया जाता है. पहला या तो पति एक साथ तलाक, तलाक, तलाक कह दे या फिर कहे कि मैं तुम्हें हमेशा के लिए तलाक देता हूं. इसके बाद तलाक लागू हो जाता है. कोर्ट के मुताबिक, मुस्लिम समाज में ट्रिपल तलाक या तलाक-ए-बिद्दत को अच्छा नहीं समझा जाता और ये इतना चलन में भी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कुरान और हदीस से कई अंश भी लिए हैं.
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