‘शहीदों की मौत पर लगेंगे हर बरस मेले। मरने वालों का यही बाकी निशां होगा’
अंग्रेजी हुकूमत से चली आजादी की लड़ाई से जुड़ी हुई कई घटनाएं ऐसी हैं, जो आज भी याद की जाती हैं। उन घटनाओं में से एक है ‘भारत छोड़ो आंदोलन’। 9 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जबकि 8 अगस्त 1942 को बंबई के गोवालिया टैंक मैदान पर अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति ने वह प्रस्ताव पारित किया था, जिसे ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव कहा गया। इसके बाद से ही ये आंदोलन व्याहपक स्ततर पर आरंभ किया गया।
आजादी की लड़ाई में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ को एक खास लड़ाई के रूप में आज तक याद किया जाता है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चले इस आंदोलन का हिस्सा कई स्वतंत्रता सेनानी बने थे।
महाराष्ट्र के सांगली जिले के छोटे से गांव बालवाड़ी के क्रांति वन को इसी आंदोलन की याद में बनाया गया है। यहां हर पेड़ को स्वतंत्रता संग्राम के नायकों का नाम दिया गया है। यहां 700 पेड़ हैं। इस वन की देखरेख करते हैं संपतराव पवार, जिनकी उम्र 77 साल हो चुकी है।
संपत पवार की मेहनत से बंजर जमीन भी बन गई उपजाऊ
जब 1992 में भारत छोड़ो आंदोलन (9 अगस्त, 1942) की स्वर्ण जयंती मनाने के लिए यह वन बनाने का निश्चय किया, तभी से उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पवार स्कूलों और कॉलेजों से वन के विकास में सहयोग करने की अपील करते हैं। उन्होंने गांव में बंजर जमीन का टुकड़ा चुना और उस पर मिट्टी की परतें डालकर उपजाऊ बनाया।
साल 1998 तक कई छात्र उनके साथ आ चुके थे और उनके वन में 1475 से भी अधिक पेड़ लग चुके थे। उन्होंने हर पेड़ को किसी शहीद स्वतंत्रता सेनानी का नाम दिया है। वन में एक खुला हुआ ऑडिटोरियम भी है, जहां छात्र एक दिन की ट्रिप पर आकर स्वतंत्रता संग्राम के बारे में सीखते हैं।
संपत के मुताबिक उन्हें इस वन को बनाने में कई परेशानियों से जूझना पड़ा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। छात्र और युवा उनके प्रॉजेक्ट के लिए सहायता करते रहते हैं और संपत अब हॉस्टल और डिजिटल सेंटर बना रहे हैं, जहां छात्र आकर रुक सकें…Next
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