दकियानुसी विचारधारा के लोग ना जानें कब समाज को एक साथ लेकर चलने को तैयार होंगे. औरत और आदमी के फर्क को मिटाने की बातें यूं तो पूरी दुनिया में होती हैं लेकिन सब जानते हैं कि इन बातों में कितनी सच्चाई है. जो नेता दिन के उजाले में महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं उनमें से भी कई रात के अंधेरे में उस महिला पर अत्याचार करते हैं. जिस सदन में बैठकर लोग महिलाओं के उद्धार के लिए योजनाएं बनाते हैं वहीं पर कुछ लोग बैठ कर किसी असहाय महिला का रेप वीडियो भी देखते हैं. पुरुषवादी समाज की सोच में महिला सिर्फ एक कठपुतली है जिसे वह हमेशा अपने इशारों पर नचाना चाहता है.
हाल ही में एक ऐसी खबर आई है जिसने यह साबित कर दिया है कि आज भी महिलाओं पर पुरुषों का ही वर्चस्व चलता है. अफगानिस्तान में महिला टीवी एंकरों को एक फरमान जारी करके कहा गया है कि वे बिना हिजाब के टीवी पर नजर नहीं आएं और न ही ज्यादा सज धज कर खुद को टीवी पर पेश करें. ऐसा तब हो रहा है जब अफगानिस्तान की मीडिया नए तेवरों और अंदाज में ढल रही है.
माना जा रहा है कि सूचना एवं संस्कृति मंत्रालय ने उलेमा परिषद के दबाव में आकर यह फैसला किया है. गौरतलब है कि उलेमा परिषद अफगानिस्तान के इस्लामी विद्वानों की सबसे ऊंची धार्मिक संस्था है.
साल 1996-2001 के तालिबानी शासन के दौरान अफगान मीडिया कमोबेश परिदृश्य से गायब ही रहा. लेकिन अब उसे काफी आजादी हासिल है. साल 2001 के बाद से लेकर अब तक देश में दो दर्जन से अधिक टीवी चैनल शुरू किए जा चुके हैं. पर आज भी इन न्यूज चैनलों में न्यूज रीडरों की संख्या बेहद कम है.
और इस बीच एंकरों का हिजाब पहनकर न्यूज देने का फंडा किसी के समझ से परे है. कहते हैं नारी की इज्जत अगर आप आंखों से करो तो कम कपडों में भी आपको नारी की शील दिखेगी वरना आपको साड़ी-सलवार में लिपटी लड़की भी वासना की प्रतिमूर्ति लगेगी. मीडिया हर देश का वह स्तंभ है जिस पर समाज को सच्चाई दिखाने का जिम्मा होता है. सबको समझना चाहिए कि ऐसे दकियानुसी फतवे किसी भी तरह से आजादी की राह पर चले रहे देश की निशानी नहीं हैं.
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