असमिया साहित्य के लिए पर्याय बन चुकी इंदिरा गोस्वामी का 29 नवंबर, 2011 को निधन हो गया. इंदिरा गोस्वामी को इसी साल फरवरी माह में मस्तिष्काघात हुआ था. इंदिरा गोस्वामी साहित्य की दुनिया में मामोनी रायसन गोस्वामी के नाम से लिखती थीं. 14 नवंबर, 1942 को गुवाहाटी में जन्मी इंदिरा ब्राह्मण परिवार से थीं. असम में पली-बढ़ी इंदिरा गोस्वामी का पहला कहानी संग्रह साल 1962 में चिनाकी मोरोम नाम से प्रकाशित हुआ जब वह छात्रा थीं.
कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह कुछ समय के लिए वृंदावन में भी रहीं. यहां वह मन की शांति के लिए आई थीं. उन्होंने अपनी जीवनी में इस बात का जिक्र किया है कि वह अत्यधिक तनाव से ग्रस्त थीं इसलिए वृंदावन गईं जहां उन्होंने मानवीय जीवन को नजदीक से समझा.
इसके बाद वह दिल्ली विश्वविद्यालय के आधुनिक भारतीय भाषा विभाग में एक शिक्षिका के रूप में नियुक्त की गईं. रामायण काल का गहन अध्ययन करने वाली गोस्वामी को असमी साहित्य में योगदान के लिए वर्ष 2000 में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था. उन्होंने ‘दाताल हाथी उवे खोवा’, ‘नीलकंठ ब्रज’ और ‘आधा लिखा दस्तावेज’ सहित पुरस्कार जीतने वाली अनेक किताबें लिखीं.
गोस्वामी ने प्रतिबंधित यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) और केंद्र सरकार के बीच शांति वार्ता में अहम भूमिका भी निभाई थी लेकिन साल 2005 में उन्होंने खुद को इससे अलग कर लिया था.
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