यूँ देखा जाए तो ये खबर उनके लिए नई नहीं है जो भारत की शिक्षा व्यास्था से परिचित हैं, खासकर उत्तर भारत के. कक्षा से शिक्षकों का गायब रहना उत्तर भारत के सरकारी स्कूलों की विशेष पहचान है. पर उस शिक्षक के बारे में आप क्या कहेंगे जो अपने 24 साल के लंबे कॅरियर में 23 साल तक अनुपस्थित रहा.
ये कारनामा करने वाली शिक्षिका का नाम संगीता कश्यप है. संगीता इंदौर के एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका हैं. गवर्मेंट अहिल्या आश्रम स्कूल की प्रिंसिपल सुषमा वैश्य अपने स्कूल की इस टीचर के बारे में कहती हैं कि, “उन्होंने 1990 में मध्य प्रदेश विद्यालय शिक्षा विभाग के देवास स्थित गवर्नमेंट महारानी राधाबाई कन्या विद्यालय में बतौर स्कूल शिक्षिका के रूप में नियुक्ति मिली. हालांकि संगीता 1991 से 1994 के बीच छुट्टी पर रही”.
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“1994 में संगीता का तबादला इंदौर के अहिल्या आश्रम स्कूल में हो गया पर वे इसी साल मातृत्व अवकाश पर चली गयी और उसके बाद से फिर कभी ड्यूटी के लिए रिपोर्ट नहीं किया”.
इस तरह से संगीता ने एक ऐसा रिकॉर्ड बना डाला जिस पर मध्य प्रदेश शिक्षा विभाग शर्म ही कर सकता है. गौरतलब है कि 23 सालों तक हाथ पे हाथ धर के बैठे रहने के मध्य मध्य प्रदेश का शिक्षा विभाग अब अपनी इस 46 वर्षीय कर्मचारी पर अनुशासनात्मक कार्यवाई करने की बात कह रहा है.
हालांकि इस तरह नौकरी से गायब रहने वाली संगीता कश्यप अकेली टीचर नहीं हैं. कुछ ऐसी ही कहानी 42 वर्षीय रचना दुबे की भी है. दस साल पहले रचना ने अपनी पीएचडी पूरी करने के लिए छुट्टी मांगी थी पर वे आजतक काम पर वापस नहीं लौटी.
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स्कूल की प्रिंसिपल सुषमा वैश्य का कहना है कि इन अध्यापिकाओं को कई बार इनके अनुपस्थिति से संबंधित पत्र भेजे गए पर सभी पत्र बिना डिलीवर हुए वापस लौट आए. उनका कहना है कि स्कूल ने संबंधित टीचरों की शिकायत जिला शिक्षा अधिकारी से कर दी है.
वंही जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि दोनों अध्यापिकाओं के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाई संबंधित पेपर पहले ही मध्य प्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग के जॉइंट डायरेक्टर को भेजा जा चुका है.
यह अच्छी बात है की मध्य प्रदेश शिक्षा विभाग की नींद आखिरकार खुल गई पर क्या वह इस बात का जवाब दे सकती है कि इतने दिनों तक इन अध्यापिकाओं के खिलाफ कोई कार्यवाई क्यों नहीं की गई. साथ ही उन विद्यार्थियों के नुकसान की भरपाई कौन करेगा जिन्हें पढ़ाने की जिम्मेवारी इन शिक्षिकाओं की थी.
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