इस ब्रह्मांड में क्या कोई ग्रह और भी है जहाँ पृथ्वी जैसी जीवन की संभावना है? यह महत्वपूर्ण प्रश्न कई वर्षों से विश्व भर के वैज्ञानिकों के दिमाग में तरह-तरह से आकार ले रहा है. अमेरिका, चीन, रूस और अन्य कई देश वर्षों से इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ने के लिए अंतरिक्ष में अपने-अपने यान भेज रहे थे. इसके पीछे उन सबकी मंशा इस अभियान में आगे बढ़ कर खोज करने और विश्वभर में अपनी प्रौद्योगिकी का लोहा मनवाने की थी, पर बिना फल की इच्छा के कर्म करने वाला और विश्व भर को शून्य देने वाले भारत ने इस अभियान में सफलता हासिल कर ली है. और यह अभियान नासा जैसे किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन ने नहीं बल्कि, स्वदेशी इसरो ने चलाया था. आइए जानें इस सफलता के सूत्रधारों को जिनकी बदौलत आज सुबह हमारी आँखे खुलते ही सीना चौड़ा हो गया.
भारत ने अपने मंगल मिशन में सफलता हासिल कर ली है. हमारे भारतीय वैज्ञानिकों ने वो कर दिखाया है जिसे दुनिया भर के वैज्ञानिक करना चाह रहे थे. मंगल मिशन की कामयाबी ने भारत को अपने पहले ही प्रयास में मंगल पर पहुँचने वाला पहला देश बना दिया है. इस सफलता के पीछे भारतीय वैज्ञानिकों ने दिन-रात एक कर दिए थे. आइए, जानते हैं ऐसे श्रद्धेय वैज्ञानिकों को जिनके प्रयासों ने हमें गौरवान्वित होने का एक और मौका दिया.
के. राधाकृष्णन- एसरो के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव के राधाकृष्णन इस अभियान का नेतृत्व कर रहे थे. इसरो की गतिविधियों की निगरानी इनकी जिम्मेदारी है.
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एम. अन्नादुरई- मंगल अभियान के निदेशक के पद पर कार्य कर रहे एम. अन्नादुराई ने वर्ष 1982 में इसरो में अपनी सेवा देनी प्रारंभ की थी. इन्होंने कई परियोजनाओं का नेतृत्व किया है. इनके पास बजट प्रबंधन, शैड्यूल और संसाधनों की भी जिम्मेदारी है. ये चंद्रयान-१ परियोजना के भी निदेशक रह चुके हैं.
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एस. रामाकृष्णन- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक और लॉन्च अथॉरिजन बोर्ड के सदस्य है. वर्ष 1972 में इन्होंने इसरो में योगदान देना शुरू किया था. पीएसएलवी को बनाने में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
एस. के. शिवकुमार– शिवकुमार इसरो उपग्रह केंद्र के निदेशक हैं. वर्ष 1976 में इसरो में योगदान के बाद इन्होंने कई भारतीय उपग्रह अभियानों में अपना योगदान दिया है.
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