ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी. जी हां, कुछ इसी तर्ज पर तमिलनाडु विधानसभा ने अपने विधायकों को परिसर में मोबाइल लाने पर पाबंदी लगा दी है. कर्नाटक और गुजरात विधानसभाओं में कार्यवाही के दौरान कुछ विधायकों की ओर से पोर्न सामग्री देखते हुए पकड़े जाने की घटना से सबक लेते हुए तमिलनाडु ने विधायकों को परिसर में मोबाइल ना लाने का फरमान जारी किया है. हालांकि इस फरमान से जहां कुछ विधायक खुश हैं तो कुछ इसका विरोध कर रहे हैं.
इस प्रतिबंध के अंतर्गत मंत्री, विधायक और पत्रकार भी शामिल होंगे. सदस्यों के लिए अलग लॉकर लगाए गए हैं ताकि वह सदन में प्रवेश करने से पहले अपने मोबाइल फोन उस लॉकर में रख सकें.
लेकिन यहां यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या मोबाइल पर प्रतिबंध लगाकर तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष डी जयकुमार ने एक सेफ मोहरा खेला है कि ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी? क्या विधान सभाध्यक्ष साहब को डर था कि जो हरकतें कर्नाटक और गुजरात में हुई वह यहां भी हो सकती हैं?
इस प्रतिबंध के पीछे चाहे वजह कुछ भी हो पर एक चीज तो साफ हो गई है कि ऐसे फैसले जनता में यह संदेश जरूर देते हैं कि कहीं ना कहीं दाल में कुछ काला है. इससे पहले कर्नाटक और गुजरात में पोर्न देखने के मामले में दोनों विधानसभाओं की बहुत किरकिरी हुई है और इसी डर में तमिलनाडु विधानसभा पर यह प्रतिबंध लगाया गया है.
लेकिन मात्र मोबाइल पर प्रतिबंध लगाना मामले का इलाज नहीं है. पोर्न देखना एक बीमारी है जिसका इलाज संभव है. अगर कोई विधायक या नेता ऐसी हरकतें करता है और उसका मामला प्रकाश में आता है तो संबंधित सरकार और प्रशासन को बेहद कड़े कदम उठाने चाहिए.
भारतीय राजनीति का यह गंदा चेहरा है तो बेहद घिनौना लेकिन यह एक सच भी है कि आज के समय में नेताओं से इमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की उम्मीदें करना बेमानी है. इस सिस्टम को बदलने के लिए एक बड़े बदलाव की जरूरत है.
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