राजनीतिक स्वार्थ और लाभ के लिए दो समुदायों के बीच जानबूझकर भड़काई गई नफरत कब खतरनाक रूप ले ले शायद किसी को अंदाजा भी नहीं होगा. 2002 के गुजरात दंगों के बाद मुजफ्फरनगर दंगे को भीषण दंगों की सूची में रखा गया है. इन दंगों में 59 लोगों की जान चली गई थी और 50 हजार से भी ज्यादा बेघर हो गए थे. दंगों के पीड़ित अब भी मुजफ्फरनगर, शामली और गाजियाबाद में बने अलग-अलग राहत शिविरों में रह रहे हैं.
राहत शिविरों में रह रहे पीड़ित परिवार वालों पर जहां एक तरफ राजनीति की जा रही है वहीं दूसरी तरफ खबर आ रही है कि आतंकी गुट लश्कर-ए-तैयबा मुजफ्फरनगर में हुए दंगों का फायदा अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए उठाना चाहता था और उसमें उसको आंशिक सफलता भी मिलने लगी थी, जब दंगा पीड़ित दो लड़के आतंकवाद की राह पर चलने को तैयार हो गए थे.
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हरियाणा के मेवात से पकड़े गए लश्कर-ए-तैयबा से संबंध रखने वाले दो लोगों से पुलिस पूछताछ के दौरान कई अन्य अहम जानकारियां भी सामने आई हैं. एक अंग्रेजी समाचार में दिल्ली पुलिस के सूत्रों के हवाले से प्रकाशित समाचार के अनुसार, आतंकी गुट लश्कर की नजर मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ितों पर थी. पकड़े गए लोगों ने अपने पाकिस्तान स्थित आकाओं के कहने पर मुजफ्फरनगर और शामली के राहत शिविरों का दौरा कर दंगा पीड़ित कुछ युवकों से संपर्क साध, लश्कर में शामिल करने के लिए उनका ब्रेनवॉश करने की कोशिश की थी. उनकी साजिश भरी बातों के झांसे में आकर दो लड़के आतंकी गुट लश्कर में शामिल होने के लिए तैयार हो गए थे. स्पेशल सेल ने इन दोनों लड़कों की पहचान कर उन्हें ढूंढ़ढ निकाला. पुलिस ने इन दोनों लड़कों की गिरफ्तारी नहीं की है, क्योंकि वह इन्हें सरकारी गवाह बना अदालत में पेश कर सकती है.
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सूत्रों के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने पिछले महीने दिसंबर में हरियाणा के मेवात क्षेत्र में आतंकियों के छिपे हुए होने की सूचना मिलने पर वहां छापेमारी की थी, हालांकि आतंकी वहां से भाग निकलने में सफल रहे थे. गौरतलब है कि पांच राज्यों के चुनाव से पहले पिछले साल कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने खुफिया विभाग के एक अफसर के हवाले से दावा किया था कि आईएसआई मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों के संपर्क में है. उन्होंने यह भी कहा था कि उनके कुछ गैर मुस्लिम दोस्तों ने भी आईएसआई वाली टिप्पणी को लेकर निराशा जताई थी. राहुल की इस टिप्पणी को आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन भी बताया गया. तब मीडिया मंच पर उनकी काफी आलोचना की गई थी.
अब यहां सवाल उठता है कि कब तक राजनीतिक पार्टियां अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए दंगों का सहारा लेंगी. अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए किया गया यह प्रयास राष्ट्र के विरोधी ताकतों को हमेशा मजबूत करेगा. अगर राजनीतिक पार्टियां शासन और प्रशासन आज भी अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेंगी तो आने वाला वक्त काफी विनाशक होगा.
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