विधानसभा और लोकसभा चुनाव को देखते हुए इस समय भारतीय जनता पार्टी में घमासान चल रहा है. घमासान इस बात का कि आखिर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में घोषित क्यों नहीं किया जा रहा है. विरोध करने वालों में जिस व्यक्तिं का सबसे ज्यादा नाम लिया जा रहा है वह भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी हैं.
मोदी भाजपा में रस्साकस्सी इतनी बढ़ गई है कि माना जा रहा है अगर आडवाणी नहीं मानते हैं तो पार्टी उन्हें दरकिनार कर आगे बढ़ सकती है. सूत्रों के मुताबिक, तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक, शुक्रवार को नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी पर मुहर लगा दी जाएगी. उधर मोदी के समर्थक भी चाहते हैं कि जल्द ही मोदी का नाम विधानसभा चुनाव से पहले किया जाए. इससे पार्टी को काफी फायदा होगा.
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अब सवाल उठता है कि जिस तरह से भाजपा ने मोदी को लेकर उम्मीदें बांधी हुई हैं उसमें मोदी अपने आप को साबित कर पाएंगे? ऐसे ही कुछ सवाल आज मोदी के सामने मुंह बाए खड़े हैं जैसे:
1. क्या नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी को विजय दिला पाएंगे?
2. क्या मोदी उन मोर्चों पर सफल हो पाएंगे जहां आडवाणी 2009 में नाकामयाब रहे थे?
3. क्या भाजपा के पुराने नेता और सहयोगी प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी को स्वीकार कर पाएंगे?
4. सवाल यह भी है कि क्या 2009 के आडवाणी के मुकाबले मतदाताओं में मोदी को लेकर ज्यादा आकर्षण है?
5. मोदी के समर्थकों और विरोधियों, दोनों में उनकी मुस्लिम विरोधी छवि है. इसलिए क्या उनकी मुस्लिम विरोधी छवि भारत की 80 फीसदी हिंदू जनसंख्या में भाजपा के समर्थन का सैलाब पैदा कर सकेगी?
6. एक अन्य सवाल यह भी है कि नरेंद्र मोदी की छवि एक ‘विकास पुरुष’ की बनाई गई है. कहा जाता है कि उन्होंने आर्थिक विकास के बूते अपने राज्य में खुशहाली पैदी की. वे अपनी इस उपलब्धि का जिक्र हर मंच पर जमकर करते भी हैं. अब सवाल उठता है कि गुजरात में सुशासन का मोदी का दावा क्या भारत के 80 करोड़ वोटरों का उतना हिस्सा अपनी तरफ खींच पाएगा जिसके बल पर उनकी पार्टी की सरकार बन सके.
2004 में भाजपा ने ‘भारत उदय’ और ‘इंडिया शाइनिंग’ के नारों के साथ ऐसा ही दावा किया था जिसका लोगों पर इतना असर नहीं हो पाया कि भाजपा सत्ता में वापसी कर पाती. ऐसे में मोदी के सामने चुनौतियों की भरमार है जिसके पार निकलना आसान नहीं होगा. अगर मोदी अपने आप को साबित नहीं कर पाए तो जिस तरह से पिछले लोकसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व के साथ मैदान में उतरी भाजपा को पराजय मिली थी और जिसके बाद आडवाणी को पार्टी में दरकिनार किया जाने लगा शायद वही हाल मोदी का न हो जाए.
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