याद आता है वह दिन जब अप्रैल 2011 में जनलोकपाल की मांग करते हुए अन्ना आन्दोलन के समय केंद्र के किसी मंत्री ने तब की अन्ना टीम को कह दिया था कि “अगर जनलोकपाल बिल पास कराना है तो खुद राजनीति के अखाड़े में उतरिए.” उस समय तो अन्ना टीम ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन बाद में जब उन्हें लगने लगा कि यह सरकार ढीठ है और उनकी मांग नहीं मानेगी तब टीम अन्ना के कुछ सदस्यों ने देश की राजनीति में शामिल होने की ठान ली. जिसके बाद टीम अन्ना तो बिखर गई लेकिन देश को एक ऐसी पार्टी (आम आदमी पार्टी) मिली जो महज कुछ ही महीनों में दिल्ली के मतदाताओं का दिल जीतकर अग्रणी पार्टी की कतार में खड़ी हो गई.
इस चुनाव में ‘आप’ बनी खास
पिछले नवंबर 2012 में आम आदमी पार्टी अस्तित्व में आई. उस समय राजनीतिक विशेषज्ञ यह मानते थे कि भले ही अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को लाखों लोगों का समर्थन प्राप्त है लेकिन यह समर्थन वोट में तब्दील नहीं हो पाएगा. विशेषज्ञ ‘आप’ को इस परिणाम से पहले साधारण पार्टी के रूप में लेते थे, लेकिन मुश्किल से एक साल भी नहीं हुए होंगे जब आम आदमी पार्टी ने न केवल अपने आप को स्थापित किया बल्कि दिल्ली के मतदाताओं के दिलों में समा गई.
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औरों से अलग पार्टी
जब देश में कोई नई पार्टी बनाई जाती है तो उस समय लोगों (मतदाता) की राय इस पार्टी के बारे कुछ इस तरह से होती है – ‘यह भी अन्य पार्टियों की तरह भ्रष्ट निकलेगी’ लेकिन आम आदमी पार्टी को लेकर लोगों के विचार कुछ अलग थे. यह विचार ऐसे थे जिसका अंदाजा लगाना राजनीति के सूरमाओं के लिए आसान नहीं था. इसका सही अंदाजा तभी लगा जब 8 दिसंबर को इसने अप्रत्याशित रूप से 70 में से 28 सीटें अपनी झोली में डाली.
जो भाजपा नहीं कर पाई वह ‘आप’ ने कर दिया
15 साल से सत्ता पर काबिज दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार को जहां भाजपा डिगा नहीं सकी वहीं आम आदमी पार्टी ने न केवल कांग्रेस को हराया बल्कि भाजपा को भी सत्ता से दूर कर दिया. आज भले ही दिल्ली के चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई हो लेकिन ‘आप’ की वजह से अभी भी सरकार बनाने में विफल है.
वैसे आप की सफलता इस मायने में भी खास है कि इसने दिल्ली से कांग्रेस का वजूद ही खत्म कर दिया. इस पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव में 43 सीटें मिली थीं उसे 8 पर समेट दिया. इसमें कुछ हद तक भाजपा ने भी अहम भूमिका निभाई.
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कांग्रेस के दिग्गजों को बाहर का रास्ता दिखाया
देश में बहुत ही कम पार्टियां हैं जो किसी स्थापित पार्टियों के सूरमाओं को हराकर बड़े पैमाने पर कामयाबी हासिल कर पाई हों लेकिन आप ने इस चुनाव में यह भी कर दिखाया. दिल्ली के जो नेता यह मान कर चल रहे थे कि कोई उन्हें हरा नहीं सकता उसे आम आदमी पार्टी के नेताओं ने धूल चटा दिया.
कांग्रेस पार्टी के हारने वाले बड़े दिग्गज जिसे ‘आप’ के नेता ने हराया उसमें शीला दीक्षित, अशोक वालिया, किरण वालिया, राजकुमार चौहान, चौधरी प्रेम सिंह हैं. इसमें से कांग्रेस के उम्मीदवार 15 और 20 सालों से सत्ता पर काबिज हैं. वहीं 80 वर्षीय कांग्रेस के चौधरी प्रेम सिंह अंबेडकर नगर से बीते 55 वर्षों से चुनाव जीतते आ रहे थे उन्हें भी आप के नेता ने पटकनी दी.
देश में फिलहाल के राजनैतिक माहौल को अगर देखें तो इस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी शहरी क्षेत्रों के सबसे अधिक लोकप्रिय नेता माने जाते हैं लेकिन इसमें भी आम आदमी पार्टी और केजरीवाल ने सेंध लगा दी है. यह संभव है कि दिल्ली में शानदार प्रदर्शन के बाद केजरीवाल पूरे देश में यही सिलसिला बरकरार रखना चाहें. ऐसी स्थिति में आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के राहुल गांधी और भाजपा के नरेंद्र मोदी के लिए वह खतरे की घंटी साबित हो सकते हैं.
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