ये जीते हुए लोग थे, जो इस लम्हे को जम कर जी लेना चाहते थे. जन लोकपाल आंदोलन में शनिवार की जीत के बाद अब अनशन तोड़ने की महज औपचारिकता बाकी थी. यहां मौजूद एक लाख से ज्यादा लोगों के लिए यह भावनात्मक लम्हा था, अपनी जीत का जश्न था और इतिहास का गवाह होना था. यह इतिहास बना दस बज कर बीस मिनट पर, जब अन्ना ने दो छोटी बच्चियों इकरा और सिमरन के हाथों नारियल पानी और शहद का शर्बत पीकर 12 दिन बाद अनशन तोड़ा.
रविवार 28 अगस्त की शाम को दिल्ली के इंडिया गेट पर इतने अधिक लोग इकठ्ठा हुए जितना देश के आजादी के दिन यानि पंद्रह अगस्त के दिन भी नहीं होते हैं. भ्रष्टाचार के खिलाफ 74 वर्षीय अन्ना हजारे ने 12 दिन का अनशन रखकर देश की सोई हुई जनता को इस कदर जगा दिया कि देश के शासन में सर्वोच्च स्थान पर खड़ी संसद भी जनता के आगे झुक गई.
अन्ना बने हीरो
संसद में अपनी तीन मांगों का प्रस्ताव पारित होने के बाद गांधीवादी अन्ना हजारे ने 13वें दिन, 288 घंटे लंबा अपना अनशन खत्म कर दिया. अनशन तोड़ने के बाद विशाल जन समूह को संबोधित करते हुए अन्ना ने कहा कि उन्होंने अपना अनशन सिर्फ स्थगित किया है लेकिन उनकी लड़ाई जारी रहेगी. असली अनशन पूरी लड़ाई जीतने के बाद ही टूटेगा. उनका चेहरा देखकर लग ही नहीं रहा था कि वह पिछले 12 दिनों से भूखे हैं. सादगी अन्ना हज़ारे की शख्सियत का एक मजबूत पक्ष रही है. रामलीला मैदान पर अपने अनशन के दौरान भी हजारे का यही पहलू नजर आया.
अन्ना के अनशन की एक खास बात रही कि यह पूरी तरह से शांतिपूर्ण अनशन बना रहा. 13 दिनों से जारी इस अनशन का गवाह बने रामलीला मैदान में लाखों की संख्या में आम जनता इकठ्ठा हुई लेकिन एक भी दिन यहां हिंसा की कोई खबर नहीं आई. दुनिया के सामने अन्ना हजारे के अनशन ने मिसाल रखी है कि आंदोलन कैसे करना चाहिए.
युवा शक्ति का परिचय
बेशक आज का युवा फैशन परस्ती और अपनी ही दुनिया में कहीं खो गया है पर वह सोया नहीं है. अन्ना के आंदोलन ने एक बार फिर जता दिया कि देश की युवा-शक्ति कितनी महत्वपूर्ण है? इस आंदोलन को सफल बनाने में युवाओं का बहुत बड़ा हाथ रहा है. चाहे रामलीला मैदान में भारी समर्थकों को संभालना और मंच के कार्यों को देखना हो या मीडिया के साथ बातचीत करना अन्ना के युवा समर्थकों ने बढ़चढ़ कर अपना काम निभाया. साथ ही अन्ना के समर्थन में भी युवाओं की भागीदारी अत्यधिक रही है. देश में युवाओं का असर अन्ना के आंदोलन से साफ जाहिर हो जाता है. वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है जब देश के युवाओं ने अपना दम दिखाया हो इससे पहले जेपी आंदोलन और 1990-91 के आरक्षण विरोधी आंदोलन में हम युवाओं की शक्ति को देख चुके हैं और जान चुके हैं कि अगर यह काबू में हैं तो कितने फायदेमंद हैं और अगर बेकाबू हो गए तो.. अन्ना हजारे ने अपने भाषण में बार-बार युवाओं का जिक्र कर उन्हें अहिंसा और शांति बनाए रखने की अपील की जिसकी वजह से युवा भारी मात्रा में आंदोलन से जुड़ते भी रहे और संयमित भी रहे.
इंडिया गेट पर दूसरी आजादी का जश्न
हजारे ने 12 दिन के उपवास के बाद आखिरकार अपना अनशन तोड़ दिया. अनशन टूटते ही हजारे गुड़गांव के मेदांता अस्पताल रवाना हो गए. पर उनके समर्थकों ने अन्ना की इस जीत को दूसरी आजादी के जश्न के रूप में मनाने का निर्णय लिया और हजारों की तादाद में लोग पहुंच गए इंडिया गेट. रामलीला मैदान के बाद अनशन का दूसरा सबसे बड़ा गवाह बना इंडिया गेट. जितने लोग इंडिया गेट पर मौजूद थे उतने शायद ही पंद्रह अगस्त या 26 जनवरी को इकठ्ठा होते हैं. साफ था कि आम जनता जो पिछले काफी समय से सोई हुई प्रतीत हो रही थी वह जाग गई थी और वह भी खुलकर अपनी इस आजादी का जश्न मना रही थी. हालांकि अभी लोकपाल बिल बना नहीं है लेकिन सरकार ने आस जताई है कि यह बनेगा और भ्रष्टाचार मिटाने में थोड़ी सहायता मिलेगी.
पिछले कुछ समय तक हम सभी लोकतंत्र के चार स्तंभों को ही जानते थे. संसद, न्यायपालिका, नौकरशाही और मीडिया लेकिन इन सब में जनता कहां थी. जनता लोकतंत्र से गायब कर दी गई थी इसी गायब लोकतंत्र को अन्ना हजारे के आंदोलन ने दुबारा सामने लाकर खड़ा कर दिया है. ‘राइट टू रिकॉल’ और ‘राइट टू रिजेक्ट’ जैसे प्रभावी चुनाव-सुधार कदमों को उठाकर अन्ना हजारे ने साफ कर दिया कि उनकी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई बल्कि सिर्फ स्थगित हुई है.
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