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कहां जाएगा अन्ना का अनशन


भारत एक लोकतांत्रिक देश है और एक लोकतांत्रिक देश में किसी को भी शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात रखने का हक है. लेकिन अगर कोई सरकार इस हक को छीनती है तो उसे तानाशाह ही कहा जाएगा. मौजूदा केंद्र सरकार भी इसी तानाशाही की प्रतीक लगती है जो पहले रामदेव के अनशन को रात के बारह बजे जाकर बलपूर्वक खत्म करवाती है और फिर गांधीवादी अन्ना हजारे को उनके घर से ही गिरफ्तार कर तिहाड़ में डाल देती है.


16 अगस्त की सुबह को अन्ना हजारे को उनके घर से गिरफ्तार कर लिया गया. बिना वजह और बिना धारा 144 के उन्हें उनके घर से ही गिरफ्तार करवाने के पीछे आखिर हाथ था किसका?


Anna Hazareअन्ना हजारे की हठ : अनशन होगा तो जेपी पार्क में ही होगा वरना…

दिल्ली पुलिस ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे की गिरफ्तारी के लिए आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 107 और 141 का इस्तेमाल किया था. लेकिन 24 घंटे से कम समय में ही यूपीए सरकार और दिल्ली पुलिस के होश ठिकाने आ गए और आनन फानन में अन्ना को रिहा करने के आदेश दे दिए गए पर जो अपनी बात से हट जाए वह अन्ना नहीं. अन्ना भी अपनी बात से नहीं हटे और पिछले 24 घंटे से तिहाड़ जेल परिसर में ही अपना अनशन लिए बैठे हैं. 73 वर्षीय हजारे ने जेल परिसर के प्रशासनिक खंड के एक कमरे में अपने सहयोगी अरविंद केजरीवाल के साथ रात गुजारी.


अन्ना हजारे को गिरफ्तार कर तिहाड़ पहुंचाने वाली सरकार ने देर शाम उन्हें रिहा करने का फैसला कर लिया. अन्ना के समक्ष दिल्ली पुलिस ने दो शर्ते रखी हैं. पहली, सरकार अन्ना को जेपी पार्क में सिर्फ तीन अनशन करने की अनुमति देने को राजी है. दूसरी, यदि अन्ना लंबे समय तक अनशन करना चाहते हैं तो वे अपने गांव रालेगांव सिद्धि जाकर करें. अन्ना ने इन शर्तों के साथ रिहा होने से इंकार कर दिया है. अन्ना का साफ कहना है अगर वह अनशन करेंगे तो जेपी पार्क में ही करेंगे फिर चाहे उसके लिए उन्हें जेल में ही क्यूं ना रहना पड़े.


Anna-protest_sl_15_8_2011कांग्रेस के पतन की शुरूआत !

अन्ना की गिरफ्तारी के खिलाफ देशव्यापी गुस्से और इमरजेंसी जैसे हालात पैदा करने के आरोपों से बदहवास दिख रही सरकार और कांग्रेस को कोई राह नहीं सूझ रही है.


अन्ना की गिरफ्तारी ने संसद में पूरे विपक्ष, खासतौर पर भाजपा और वाम दलों को एकजुट होने का मौका दे दिया है. आंदोलित विपक्ष ने नहीं, बल्कि सहमी सरकार ने संसद को नहीं चलने दिया. सरकार की फजीहत, विपक्ष के तेवर और जन लोकपाल आंदोलन को मिली नई ऊर्जा अब मिलकर कांग्रेस के राजनीतिक नुकसान को कई गुना बढ़ाएंगे.


VOICES FOR ANNAअन्ना हजारे के साथ पूरा देश

अन्ना की गिरफ्तारी से एक जन आंदोलन बनता दिख रहा है. इसी का दबाव था कि सरकार अन्ना हजारे को एक दिन भी जेल में नहीं रख सकी. वैसे सुबह जिस अंदाज में अन्ना को उठाया गया और न्यायिक हिरासत के जरिए तिहाड़ भेजा गया था, उससे लग रहा था कि सरकार सख्त हो रही है.


अन्ना की गिरफ्तारी से पूरे देश में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा. दिल्ली में मूसलाधार बारिश के बावजूद बहुत बड़ी संख्या में लोग छत्रसाल स्टेडियम पर जमा थे. राज्यों की राजधानियों से लेकर छोटे-छोटे शहरों और गांवों तक में लोग सड़कों पर उतर आए. सड़क-संसद से लेकर सोशल नेटवर्किग साइटों पर भी अन्ना के समर्थन में सैलाब आ गया.


लोगों का साथ और उनका रोष देखकर लगता है कि अन्ना हजारे के अनशन को रामदेव के आंदोलन की तरह उखाड़ फेंकने की कोशिश कांग्रेस सरकार बिलकुल नहीं करेगी और अगर ऐसा होता है तो आशा है कि देश को दूसरा इमरजेंसी देखनी पड़े. लेकिन कांग्रेस भी कोई नई खिलाड़ी नहीं है. उसके पास भी प्रणव मुखर्जी और कपिल सिब्बल जैसे तिकड़मबाज हैं जो वक्त की नजाकत को समझते हुए अपना दांव चलेंगे. अब सवाल जनलोकपाल और सरकारी लोकपाल का नहीं बल्कि इस बात का है कि क्या देश में कांग्रेस सरकार कानून से भी बढ़कर है?


देश में भ्रष्टाचार को खत्म करना तो मुश्किल है लेकिन इस पर रोक लगाना अवश्य मुमकिन है अगर अन्ना का जनलोकपाल बिल पास हो जाए तो. अब हम सभी जानते हैं कि एड्स एक लाइलाज बीमारी है लेकिन इसकी रोकथाम तो मुमकिन है ना. उपचार से बेहतर रोकथाम होता है. सरकार और सभी को समझना होगा कि भ्रष्टाचार नामक बीमारी को अगर हम मिटा नहीं सकते तो कम से कम ऐसे काम तो करें जिससे यह कुछ हद तक कम हो जाए और फैलने से रुका रहे. आने वाले कुछ दिन कांग्रेस सरकार के लिए बेहद भारी और भारतीय जनता के भविष्य के लिए बेहद निर्णायक साबित होने वाले हैं.


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