अंधेर नगरी चौपट राजा. क्या कहने भारत जैसे देश की जहां एक किलो टमाटर तो आदमी को 40 रुपए किलो मिलता है लेकिन उसी देश में एक आदमी को पूरे दिन का गुजारा करने के लिए मात्र 32 रुपए दिए जाते हैं. सरकार के योजना आयोग का कहना है कि अगर एक आदमी शहर में रहता है और प्रतिदिन 32 रुपए से ज्यादा खर्च करता है तो जनाब वह गरीब नहीं अमीर है. अब इस योजना आयोग को कौन बताए कि दिल्ली की डीटीसी बस में किराया पांच रुपए से शुरू होता है यानि दिन में अगर एक आदमी काम पर जाने का अप डाउन करे और खुदा ना करे उसका कार्यस्थल दूर हुआ तो दिन के 15 रुपए एक तरफ के हिसाब से 30 रुपए तो किराए के हो गए. अब क्या मात्र 2 रुपए में ही खाए भी और पीए भी.
क्या जमाना आ गया है. अगर आपको याद हो तो कुछ दिन पहले मुंबई में धमाकों में मरने वालों को सरकार ने पांच-पांच लाख का मुआवजा घोषित किया था, वैसे सरकार किसी की मौत पर एक या दो लाख का भी मुआवजा देती है. यह राशि सरकार की नजर में उस व्यक्ति की मौत की कीमत होती है. यानि वह आदमी अपनी पूरी जिंदगी सिर्फ पांच लाख ही कमा सकता था सो उसके परिजनों को पांच लाख पकड़ाओ और मामला बंद.
इस नजर से देखा जाए तो हमारे देश के योजना आयोग के इस “अनर्थपूर्ण” रिपोर्ट को बिलकुल सही ठहराया जा सकता है जिसमें उसने कहा है कि यदि एक शहरी व्यक्ति 32 रुपए और गांव का व्यक्ति 26 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से खर्च कर सकता है तो वह गरीब नहीं है. ऐसे में अब से ऐसे व्यक्तियों को गरीबी रेखा से नीचे नहीं माना जाएगा और केंद्र व राज्य सरकार की ओर से गरीबों के लिए चल रही वेलफेयर स्कीम्स का लाभ वह नहीं ले पाएगा.
योजना आयोग का मानना है कि दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में एक औसत परिवार जिसमें चार सदस्य हों उसके लिए 3860 रुपए काफी हैं. और जो परिवार एक महीने में 3860 रूपए खर्च करता है उसे आप गरीब कह नहीं सकते.
योजना आयोग की इस रिपोर्ट में और भी हास्यपद बिंदु हैं जिन्हें पढ़ने के बाद आप हंसने और रोने पर मजबूर होंगे. योजना आयोग के अनुसार स्वास्थ सुविधाओं पर 39.70 रुपए प्रति माह खर्च करके आप स्वस्थ रह सकते हैं. शिक्षा पर 99 पैसे प्रति दिन खर्च करते हैं तो आपको शिक्षा के संबंध में कतई गरीब नहीं माना जा जाएगा. 14 साल के बच्चों के लिए सरकार ने शिक्षा को मुफ्त कर रखा है पर योजना आयोग भूल गया कि दसवीं-बारहवीं और स्नातक की पढ़ाई में लोगों के लालों पर इतना पैसा खर्च होता है कि उनका तेल निकल जाता है.
ये रिपोर्ट योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को हलफनामे के तौर पर पेश की है. और तो और सबसे खास बात इस पर हस्ताक्षर किए हैं मनमोहन सिंह जैसे अर्थशास्त्री ने जो कभी देश के सबसे बेहतरीन वित्तमंत्री थे और इस वक्त देश के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में जाने जा रहे हैं.
अब बात करते हैं जमीनी हकीकत की तो देखिए एक आदमी अगर सुबह की चाय पीए तो उसके लगेंगे पांच रुपए, दिन का खाना 20 रुपए वो भी पेट भर के नहीं बस औसत और निचले दर्जे का सड़क के किनारे स्टाल से और फिर रात को खाना खाए तो फिर 25 रुपए उसमें भी क्वालिटी भूल कर ढाबे वाले से समझौता करना पड़ेगा. यानि कि 50 रुपए तो सिर्फ खाने-पीने के चाहिए. उसमें से अगर आप दिल्ली में रहते हैं और घर से दूर काम करने जाते हैं तो दिन का 30-40 रुपए किराया लगा के चलें. यह सब तब जब आदमी अकेला हो और अगर उसका परिवार है तो बच्चों के लिए दूध, उनके खर्चे अलग. फिर भला किस मुंह से योजना आयोग ने एक व्यक्ति के लिए 32 रुपए तय किए हैं. क्या एक दिन में प्रधानमंत्री 50 रु. में भी गुजारा कर पाएंगे और गांवों में क्या इंसान इंसान नहीं हैं जो उनके लिए मात्र 26 रु. तय किए गए हैं.
योजना आयोग की आंखों पर ना जानें कौन सी पट्टी बंधी है. माना कि देश के सभी मंत्री भ्रष्टाचार की कमाई खा रहे हैं लेकिन एक आम आदमी तो आज भी मेहनत मजदूरी ही कर रहा है. कमाई बढ़ने का कोई नाम नहीं, मंहगाई करो बेलगाम और खर्चे को दो मात्र 32 रुपए.
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