महंगाई और आम आदमी का साथ अब तो बहुत ही पुरानी बात हो गई है. अब तो इन दोनों का रिश्ता कुछ इस तरह का हो चुका है जहां हम चाहकर भी इनके रिश्ते को तोड़ नहीं सकते हैं. केंद्रीय वित्त मंत्री को अभी संसद में बजट पेश किए हुए 24 घंटे भी नहीं हुए थे कि तेल विपणन कंपनियों ने पेट्रोल की कीमत (Petrol Price Hike in Hindi) में प्रति लीटर 1.40 पैसे बढ़ा दिए. ऐसा लग रहा है जैसे इन तेल कंपनियों को चिदंबरम के बजट पेश करने का इंतजार था.
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पहले तो तेल की कीमत कुछ महीने के अंतराल पर बढ़ाए जाते थे लेकिन अब तो तेल कंपनियों को कीमत बढ़ाने के लिए एक महीने से भी कम का वक्त लगता है. आपको बताते चलें कि कंपनियों ने बीते 16 फरवरी को पेट्रोल के दाम में प्रति लीटर 1.5 पैसे और डीजल के दाम में प्रति लीटर 45 पैसे की वृद्धि की थी. आइए जान लेते हैं पिछले एक सालों से इन तेल कंपनियों और सरकार ने पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतों में कितनी बढ़ोत्तरी की है.
1. 6 अक्टूबर, 2012 को एलपीजी गैस में 11.42 रुपए की बढ़ोत्तरी की गई थी.
2. 13 सितंबर, 2012 को सरकार ने डीजल के दाम में 5 रुपए की बढ़त्तरी की.
3. इससे पहले 23 मई, 2012 को सबको चौंकाते हुए पेट्रोल की कीमत में 7.54 रुपए की वृद्धि की गई.
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हर बार की तरह इस बार भी सरकार को आम आदमी से अधिक तेल कंपनियों के घाटे की चिंता है. पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाकर सरकार उन्हें राहत दिलाने की कोशिश करती है. इसमें कोई शक नहीं है कि यह कंपनियां घाटे का हवाला देकर आने वाले कुछ ही दिनों में डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ा सकती हैं. वित्त मंत्री ने तो बजट प्रस्तुत करते समय यह बात कहा था कि तेल कंपनियों को दी जाने वाली सब्सिडी कम की जाएगी जिसा सीधा मतलब है कंपनियों का घाटा और बढ़ेगा और कंपनियां अपने घाटे को पूरा करने के लिए दाम बढ़ाएंगी ही.
जिस घाटे का हवाला देकर सरकार इन तेल कंपनियों को बचाने की कोशिश करती है दरअसल वह आम जनता में भ्रम पैदा कर रही है. वह दोहरी नीति पर चल रही है. एक तरफ तो वह कंपनियों को सब्सिडी के नाम पर करोड़ों रुपये देती है दूसरी ओर इन्हीं कंपनियों के सहारे पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ाती है. लेकिन वह भूल चुकी है कि महंगाई को लेकर आम लोगों में जो रोष पनप रहा है वह आने वाले लोकसभा चुनाव में फूट सकता है.
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