देश में इस समय रिलायंस मार्ट, विशाल मेगामार्ट आदि कई बड़ी रिटेल कंपनियां चल रही हैं जिनका ग्राहकों को काफी लाभ हो रहा है. इसके साथ कृषि उत्पादों के लिए सफल आउटलेट, रिलायंस फ्रेश जैसी बहुत सी रिटेल कंपनियां हैं जो फल, सब्जियां बाजार से कम रेट में मुहैया कराती हैं जिससे ग्राहकों को फायदा ही फायदा है पर इतना सब होने के बाद भी पता नहीं क्यूं कई राज्य सरकारें खुदरा व्यापार क्षेत्र में विदेशी पूंजी के सीधे निवेश और अंतरराष्ट्रीय कंपनी वॉलमार्ट के खिलाफ हैं.
कई लोगों को लगता है कि खुदरा व्यापार के क्षेत्र में विदेशी पूंजी के सीधे निवेश से देश की अर्थव्यवस्था बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथ में चली जाएगी और देश के सामने आर्थिक गुलामी का खतरा पैदा हो जाएगा. कई लोग यह भी मानते हैं कि खुदरा व्यापार के क्षेत्र में विदेशी पूंजी के सीधे निवेश के बाद छोटे दुकानदार और उद्यमी अपना कारोबार बंद कर देने को मजबूर हो जाएंगे, करोड़ों लोग बेरोजगार हो जाएंगे और देश के सामने आर्थिक संकट पैदा हो जाएगा.
हालांकि ऐसा होने की संभावना कम है. एफडीआई के आने से हो सकता है कृषि क्षेत्र में देश को और भी अधिक आत्म-निर्भरता मिले. साथ ही इससे देश में किसानों को प्रशिक्षित होने का एक मौका मिलेगा.
वॉलमार्ट का निशाना भारतीय बाजार
घरेलू कंपनी भारती और अमेरिकी रिटेल कंपनी वॉल-मार्ट के संयुक्त उपक्रम ने धीरे-धीरे घरेलू थोक बाजार में पांव फैलाने की रणनीति लागू करनी शुरू कर दी है. दोनों कंपनियों ने ज्यादा से ज्यादा किसानों से सीधे कृषि उत्पाद खरीदने की योजना बनाई है. भारती-वॉलमार्ट ने संयुक्त उपक्रम बनाया हुआ है जो सिर्फ थोक उत्पादों की आपूर्ति करता है. इन्हें खुदरा बाजार में उतरने की अनुमति नहीं है, क्योंकि मौजूदा नियमों के मुताबिक विदेशी कंपनियां खुदरा कारोबार में नहीं उतर सकती हैं. वैसे भारती समूह का अपना रिटेल कारोबार अलग से है.
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