क्या प्रणब दा ही बनेंगे अगले राष्ट्रपति
अब्दुल कलाम रेस से बाहर, दूसरा कोई नाम मैदान में ही नहीं तो फिर समझ नहीं आता कि आखिर यह राष्ट्रपति पद के लिए इतनी बहस क्यूं? अब तो साफ है कि बंगाली बाबू प्रणब दा ही रायसीन हिल्स में पांच साल तक रहेगे. देश की सबसे बड़ी पार्टी के संकटमोचक के लिए इससे बड़ा तोहफा क्या हो सकता है कि उन्हें राष्ट्रपति बना दिया जाए, बस डर यह है कि कहीं वह भी राष्ट्रपति बनने के बाद मनमोहन सिंह की तरह मौन व्रत ना धारण कर लें.
पिछले आठ वर्ष से संप्रग सरकार को मुश्किल में डालने वाले हर सवाल का कांग्रेस के पास सिर्फ एक ही जवाब रहा है, दादा! यूपीए ने हर तरह के संकट में मौजूदा वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी को आगे किया और ज्यादातर मौकों पर उसे निराश भी नहीं होना पड़ा. और इन सब कामयाबियों के तोहफे के तौर पर यूपीए ने प्रणब दा को प्रेसिडेंट की कुर्सी ऑफर की है.
Pranab Mukherjee’s victory certain: Vayalar Ravi: पार्टियों का लोचा
माकपा को प्रणब दा के नाम पर कोई ऐतराज नहीं है तो वहीं सपा मुखिया मुलायम सिंह ने भी उनके नाम पर हामी भरी है. उनका कहना है कि राष्ट्रपति पद पर कोई राजनीतिक व्यक्ति ही होना चाहिए, हां अभी तक तृणमूल ने राष्ट्रपति के लिए प्रणब का समर्थन नहीं किया है. फिर भी प्रणब दा का राष्ट्रपति बनना बंगाली गर्व का भी मुद्दा है तो उम्मीद कर सकते हैं कि ममता दीदी भी दादा को समर्थन दे ही दें. कांग्रेस के एक शीर्ष नेता ने माना भी कि दादा के नाम पर यूपीए के घटक दलों और विपक्ष समेत कांग्रेस के बड़े वर्ग के सहमत होने पर कोई संशय नहीं है.
अगले लोकसभा चुनाव में सियासी हालात के मद्देनजर राष्ट्रपति की भूमिका खासी अहम होगी. ऐसे में अगर विश्वास के संकट की बात न हो तो दादा से योग्य आलाकमान की नजर में कोई है नहीं.
आडवाणी चाहते हैं बड़ा उलटफेर
लालकृष्ण आडवाणी का गणित है कि राजग के 28 फीसद वोटों के अलावा तृणमूल काग्रेस, अन्नाद्रमुक, बीजद, वामदलों, आजसू, झामुमो सहित कुछ अन्य छोटे दल मिल जाएं तो यह आकड़ा 50 फीसद के करीब होगा. ऐसे में संप्रग प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दी जा सकती है. पर सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न तो यह है एनडीए राष्ट्रपति पद के लिए किसे खड़ा करें?
अगर एनडीए कोई सशक्त उम्मीदवार नहीं खड़ा कर सकी तो यह साफ है कि स्वतंत्र भारत के अगले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ही होंगे.
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