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बस ख्याली पुलाव बनाने पर मजबूर कांग्रेस

भाजपा नेता नरेंद्र मोदी का उभार कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी सिरदर्दी बन चुकी है. तमाम तरह की रणनीति और कार्यक्रम मोदी की लोकप्रियता के आगे विफल दिखाई दे रहे हैं. कांग्रेस मानती है कि यूपीए-2 के शासनकाल में भ्रष्टाचार हुआ है लेकिन हाल के दिनों में केंद्र सरकार ने जिस तरह से वैधानिक और लोकहित से संबंधित फैसले लिए हैं, जिसको लेकर यह माना जाता था कि कांग्रेस को फायदा होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ.


rahul gandhi 1यूपीए-2 के शासनकाल में बहुत सारे कानून बने जैसे लोकपाल बिल, भूमि अधिग्रहण बिल और खाद्य सुरक्षा बिल आदि. ये ऐसे विधेयक हैं जिसका सीधा असर आम जनता पर पड़ता है. केंद्र सरकार चाहते हुए भी इसका फायदा नहीं उठा सकी, क्योंकि बीते कुछ सालों से भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस के खिलाफ जो माहौल बना है उससे पार्टी को काफी नुकसान हुआ है. यही चीज कहीं ना कहीं मोदी और भाजपा के लिए चुनावी टॉनिक का काम भी कर रही है.


फिर भी यह नहीं कह सकते कि कांग्रेस हार मानकर बैठ चुकी है. उसे यह तो आभास हो गया है कि आगामी आम चुनाव उसके लिए पीड़ादायक होने वाला है, इसके बावजूद भी उसके हौसलों में किसी तरह की कमी नहीं दिखाई दे रही है. देर से ही सही पार्टी का हर नेता स्ट्रेटजी के साथ काम करने में जुट गया है. उनके भाषणों, वक्तव्यों और बयानों से ऐसा लग रहा है कि उनकी प्रथमिकता नरेंद्र मोदी के बढ़ते कदम को रोकना है. ऐसा करने लिए कांग्रेस मोदी से संबंधित उन मुद्दों को सामने ला रही है जो जनता की नजर में भयावह कृत्य हैं.


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कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो देश के लिए घातक होगा. मनमोहन सिंह के बाद कांग्रेस की तरफ से अगर किसी बड़े नेता ने मोदी पर सवाल उठाया है तो वह राहुल गांधी हैं. एक निजी समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी पर सीधा प्रहार करते हुए कहा कि 2002 में गुजरात दंगे भड़काने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार जिम्मेदार है. इस तरह के आरोप कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी पहले भी अपने बयानों के जरिए मोदी पर लगा चुकी हैं.


राहुल ने आरोप लगाया कि 2002 दंगों को न सिर्फ गुजरात सरकार ने भड़काया, बल्कि वह सक्रिय तौर पर इसमें शामिल भी रही है. जब उनसे 1984 के दंगों के बारे में पूछा गया, तब उन्होंने सिख विरोधी दंगों और गुजरात के दंगों में सरकारों की भूमिका के अंतर को रेखांकित करते हुए कहा कि 1984 में सरकार जनसंहार में शामिल नहीं थी. गुजरात में वह शामिल थी.उन्होंने कहा कि 1984 में कांग्रेस सरकार दंगों को भड़का नहीं रही थी या उनमें मदद नहीं कर रही थी, बल्कि सरकार ने हिंसा को रोकने की कोशिश की थी.


इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि 2002 में हुआ गुजरात दंगा देश के गौरवशाली इतिहास में एक बदनुमा दाग है जिसका राजनीतिक फायदा समय-समय पर कांग्रेस उठाती रही है लेकिन 1984 का सिख विरोधी दंगा कहीं ना कहीं उसके हाथ बांध देता है. वह भ्रष्टाचार और दंगों पर बहुत कुछ कहना चाहते हैं लेकिन खुद के हाथ रंगे होने की वजह से वह ज्यादा कुछ बोल नहीं पाते.


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