कहते हैं हमें जो घर में सिखाया जाता है हम हीं बाहर जाकर करते हैं यानि जैसा माहौल हमारे घर का होता है वैसा ही हमारा भी बन जाता है. इस कथन को लगता है कांग्रेस के युवराज और एंग्री यंग मैन राहुल गांधी सिद्ध कर रहे हैं. पहले वित्त मंत्री कहते हैं कि महंगाई कुछ महीने और वार करेगी तो वहीं राहुल गांधी खुद ऐसे बयान देने में लगे हुए हैं जो आम लोगों के दिलों पर ठंडे चाकू की वार कर रहे हैं.
राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले यूपी बिहार के लोगों के बारे में बयान दिया था कि “कब तक आप महाराष्ट्र में भीख मांगोगे, पंजाब में जाकर मज़दूरी करोगे?” जिससे श्रम और श्रमिकों की अस्मिता और उनके सम्मान का सवाल खड़ा हो चुका है. इस भाषण के द्वारा राहुल गांधी का सीधा निशाना उन लोगों की तरफ था जो अपने मूल राज्य को छोड़ दूसरे राज्यों में नौकरी की तलाश में चले जाते हैं. अब राहुल बाबा को कौन समझाए कि अगर आज महाराष्ट्र और पंजाब समृद्धि और विकास की राह पर हैं तो इसमें एक बहुत बड़ा हाथ श्रमिकों का भी है. इसके साथ ही लोग अपने राज्य को ही नहीं कई बार तो अच्छे अवसर मिलने पर देश छोड़ कर भी जाते हैं तो क्या वह भी भिखारी हुए.
और अगर सच में यूपी और बिहार के लोग बाहर जाकर मजदूरी कर रहे हैं तो इसका भी ठीकरा कांग्रेस के ही सर फोड़ना चाहिए. क्या कांग्रेस भूल गई कि यह यूपी ही है जिसकी भूमि से पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर आज राहुल गांधी तक चुनाव लड़ते हैं. अगर कांग्रेस खुद अपने चुनाव क्षेत्र में विकास नहीं कर सकती तो उसे दूसरों को आइना दिखाने की जरूरत नहीं.
और राहुल गांधी ने तो इस कथन से भी आगे बढ़कर अपनी बात की पुष्टि के लिए एक उदाहरण दे दिया. प्रदेश के हालात पर गुस्सा जताते हुए ‘एंग्री यंगमैन’ की इमेज के साथ उतरे राहुल ने तल्ख शब्दों में कहा -‘यहां के नेता दिल्ली जाते हैं, लेकिन कोई अपनी गाड़ी का शीशा नहीं गिराता. मैं निकलकर भीख मांगने वालों से पूछता हूं कि कहां के हो, तो वे बताते हैं कि यूपी का हूं.
वाह! राहुल जी यह तो बहुत अच्छी बात है कि आप भीख मांगने वालों से भी नम्रता से बात करते हैं लेकिन आप शायद भूल गए कि इस समय केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार है. अगर आपको इन गरीबों और भिखारियों की चिंता है तो क्यूं नहीं इनके लिए कुछ करते.
चुनावी स्टंट के रूप में एक-दूसरे पर आरोप मढ़ना तो आसान है और चुनावों में ऐसा होता है लेकिन बार-बार एक क्षेत्र के लोगों को नीचा दिखाना नैतिक तौर पर भी गलत है. पर शायद ही कांग्रेस में नैतिकता जैसी कोई चीज बची है. अगर नैतिकता होती तो दिग्विजय सिंह जैसे नेता जो हमेशा उलटे-सीधे बयान देते हैं उन्हें कब का पार्टी से निकाल दिया गया होता ना कि उन्हें पार्टी महासचिव का पद दिया गया होता.
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