भारतीय समाज में व्याप्त परंपराएं और रीति-रिवाजों का पुरजोर विरोध करने वाले साहित्यकार राजेन्द्र यादव का सोमवार रात करीब 12 बजे निधन हो गया। वर्ष 1951 में प्रकाशित हुआ उनका पहला उपन्यास, जिसका नाम बदलकर ‘सारा आकाश’ किया गया था, हिन्दी भाषा का पहला ऐसा उपन्यास सिद्ध हुआ जिसने परंपरागत और रूढ़िवादी समाज की जड़ें हिला दी थी। राजेन्द्र यादव के इस उपन्यास पर ‘सारा आकाश’ नाम से फिल्म भी बन चुकी है।’
वर्ष 1930 में मुंशी प्रेमचंद द्वारा स्थापित हंस पत्रिका को वर्ष 1953 में बंद कर दिया गया था लेकिन राजेन्द्र यादव ने स्वयं इसके प्रकाशन और संपादन का जिम्मा संभाला और प्रतिस्पर्धा से भरे आज के युग में भी हंस पत्रिका का औचित्य बरकरार रखने का काम बखूबी निभाया।
राजेन्द्र यादव का जन्म 28 अगस्त, 1929 को आगरा (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई आगरा में ही पूरी की और फिर वे मेरठ चले गए। वर्ष 1949 में उन्होंने स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर 1951 में मेरठ विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की।
हिन्दी के शीर्ष साहित्यकारों में अपना नाम शामिल करवा चुके राजेन्द्र यादव की तबियत पिछले काफी समय से खराब थी लेकिन कल रात उन्हें सांस लेने में काफी कठिनाई होने लगी, जिसके चलते हिन्दी साहित्य के इस महत्वपूर्ण स्तंभ ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
जीवन के अंतिम समय में राजेन्द्र यादव के साथ एक विवाद भी जुड़ गया जिसके कारण साहित्य जगत में उनकी छवि पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया।
आरोप है कि कथित तौर पर राजेन्द्र यादव के घर में कार्यरत एक व्यक्ति ने राजेन्द्र यादव की सहायक लेखिका की अश्लील वीडियो बनाकर उसे ब्लैकमेल करना शुरू किया। लेखिका ने राजेन्द्र यादव से इस बात की शिकायत की लेकिन राजेन्द्र यादव ने गंभीरता ना दिखाते हुए सुबह इस मसले पर बात करने के लिए कहा। लेकिन राजेन्द्र यादव ने लड़की के आरोपों को गंभीरता से नहीं लिया जिस कारण उनकी सहायक लेखिका ने पुलिस को बुलाने के लिए फोन किया परंतु राजेन्द्र यादव ने पुलिस को दोबारा फोन कर ना आने के लिए कह दिया और कुछ पैसे और शराब की रिश्वत देकर मामला दबाने का प्रयास किया। यूं तो राजेन्द्र यादव शुरू से ही बोल्ड अंदाज के लेखक थे लेकिन एक स्त्री के सम्मान की कद्र ना करने की वजह से साहित्य जगत में उनके प्रति काफी रोष उत्पन्न हुआ था।
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