राजनीतिक गहमागहमी के बीच देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी के संसदीय बोर्ड ने पार्टी के नए अध्यक्ष के रूप में राजनाथ सिंह के नाम को अपनी मंजूरी दे दी और उन्हें निर्विरोध चुन लिया गया है. इससे पहले राजनाथ सिंह 2005 से 2009 तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं. मंगलवार को तेजी से बदले घटनाक्रम में अचानक नितिन गडकरी ने दोबारा अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया. गडकरी ने इसकी वजह बताते हुए कहा है कि वे नहीं चाहते कि उनकी वजह से भारतीय जनता पार्टी पर कोई आरोप लगे.
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लगभग आठ सालों से सत्ता से बाहर रही भारतीय जनता पार्टी पिछले कुछ सालों से देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी की भूमिका नहीं निभा पा रही थी. वह जनता को सत्ता का विकल्प देने में लगातार असफल सबित हुई है. कांग्रेस की अगुवाई वाली केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार वर्ष 2010 के मध्य से ही लगातार किसी-न-किसी विवाद में घिरी रही है जिसमें भ्रष्टाचार प्रमुख है. लेकिन देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा इनमें से ज्यादातर विवादों से उपजी परिस्थितियों का फायदा उठाने में नाकामयाब रही है.
भ्रष्टाचार जैसे आम मुद्दों पर जिस तरह से एक प्रमुख विपक्षी पार्टी को आक्रामक रुख अपनाना चाहिए वहां वह बिलकुल रक्षात्मक दिखी. पार्टी के बैकफुट पर जाने के पीछे की प्रमुख वजह रहे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी. महाराष्ट्र के मध्य वर्गीय परिवार में जन्मे नितिन गडकरी जब पार्टी के अध्यक्ष बनाए गए तब उस समय भाजपा की स्थिति दयनीय थी. पार्टी के नेता लोकसभा चुनाव 2009 में मिली करारी हार से सदमे में थे. तब यह उम्मीद की जा रही थी कि नितिन गडकरी को अध्यक्ष बनाए जाने के बाद पार्टी की हालत में सुधार होगा. लेकिन सुधार तो नहीं हुआ हां, सत्ता पार्टी की तरह भाजपा भी लोगों की निगाहों में चढ़ गई.
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जब से नितिन गडकरी पार्टी के अध्यक्ष रहे उस दौरान पार्टी के सामने ऐसे कई मौके आए जिसका फायदा उठाकर वह जनता के सामने अपनी इमेज बना सकती थी, उन्हें अपने पक्ष में करके उसका राजनीतिक लाभ ले सकती थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पार्टी के नेता और प्रवक्ता सत्ता पार्टी पर हमला करने की बजाय अपने अध्यक्ष को बचाते हुए दिखे. पूर्ति कंपनी फर्जीवाड़ा मामले में नितिन गडकरी अपनी ही पार्टी में अजनबी हो गए थे. उनकी ही पार्टी के कई बड़े नेता उन्हें पार्टी की तरक्की का सबसे बड़ा रोड़ा समझने लगे थे.
पार्टी के लिए अच्छी बात यह है कि बनाए गए नए अध्यक्ष राजनाथ सिंह अभी तक किसी भी तरह के विवादों से दूर रहे हैं. तो इससे उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले चुनाव को देखते पार्टी के नेता और कार्यकर्ता आक्रमक दिखेंगे. लेकिन ध्यान देने वाली बात यह भी है कि 2009 का लोकसभा चुनाव उन्हीं की अध्यक्षता में भाजपा ने लड़ा था जिसमें पार्टी को करारी हार मिली थी. देखने वाली बात यह होगी कि 2014 के चुनाव में भाजपा का क्या हश्र होता है.
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