राजनीति में दुश्मन कब दोस्त बन जाएं और दोस्त कब दुश्मन पता ही नहीं चलता. एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने बृहस्पतिवार को बयान दिया है कि उन्हें आम आदमी पार्टी से परहेज नहीं है. उनका यह बयान तब आया जब दिल्ली विधानसभा चुनाव में महज कुछ ही दिन बाकी है.
शीला दीक्षित का यह बयान कापी चौंकाने वाला है. क्योंकि आम आदमी पार्टी ने शुरुआत के दिनों से लेकर अब चुनाव प्रचार तक में दिल्ली की मुख्यमंत्री और कांग्रेस के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार कर रखा है. उधर कांग्रेस भी हाल के दिनों पर दिल्ली में आम आदमी पार्टी के असर को मानने से ही इनकार करती रही है. दिलचस्प यह भी है कि ‘आप’ ने मुख्यमंत्री के बयान पर तुरंत दी गई अपनी प्रतिक्रिया में कांग्रेस या भाजपा से किसी भी प्रकार के गठबंधन की संभावना से साफ इन्कार कर दिया है. पार्टी नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि ‘आप’ को अपने दम पर पूर्ण बहुमत मिल जाएगा.
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हालांकि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी अगले ही दिन यानी शुक्रवार को अपने बयान से पलट गई. उन्होंने कहा कि उनकी बातों का गलत मतलब निकाला गया. आप से गठबंधन का कोई सवाल ही नहीं उठता. कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ चौथी बार दिल्ली में सरकार बनाएगी.
अब सवाल उठता है कि क्या शीला दीक्षित को पूरी तरह से अभास हो चुका है कि पिछली पारियों की तरह इस बार वह अकेले दम पर दिल्ली की गद्दी पर बैठने की स्थिति में नहीं हैं. इसके लिए उन्हें दूसरे दल की आवश्यकता होगी जो उनके साथ गठबंधन कर सके. मैदान में भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी है. उनकी असली टक्कर चिर प्रतिद्वंदी भाजपा से है इसलिए उन्होंने भाजपा को मैदान से बाहर फेंकने के लिए ‘आप’ पर जाल फेंका है.
हाल ही में किए गए सर्वे से पता चलता है कि एक तरफ जहां बीजेपी 15 साल बाद सत्ता में वापसी कर रही है वहीं दूसरी तरफ इसी सर्वे में कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखाया गया है. 2008 के विधानसभा चुनाव में 41 सीटें जीतकर बहुमत से सरकार बनाने वाली कांग्रेस को इस बार मात्र 25 सीटों पर ही संतोष करना पड़ सकता है. गौर करने वाली बात है कि इसी सर्वे में आम आदमी पार्टी को 10 से 15 सीटें मिलने की उम्मीद की गई है.
वैसे इस तरह के सर्वे को कभी भी अंतिम परिणाम नहीं मान लेना चाहिए. जिस तरह का बयान आज शीला दीक्षित कर रही है. हो सकता है चुनाव परिणाम आने के बाद बीजेपी भी आप के नेताओं से इस तरह की गुहार (बयान) लगाए. क्योंकि कई सर्वे में यह भी पाया गया है कि दिल्ली में कोई भी पार्टी वह चाहे भाजपा हो या कांग्रेस बिना किसी दूसरे दल के समर्थन से सरकार नहीं बना सकती. अब यहा ‘आप’ और उनके नेताओं पर निर्भर करता है कि वह इन पार्टियों का समर्थन करती हैं या फिर हमेशा ती तरह विरोध.
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