Special placement from Tihar Jail
जेल का नाम आते ही जहन में कई सारी तस्वीरें उभरने लगती हैं जैसे शातिर चोर, कुख्यात अपराधी, डकैत जो अपने कर्मों की वजह से जेल की सजा काट रहे हैं. इनकी सजा कई-कई सालों और उम्रकैद तक की होती है. इन कैदियों को सजा देने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं ताकि यह दुबारा अपराध की ओर रुख न करें. इसके लिए उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित भी किया जाता है. कभी-कभार इन कैदियों को पछतावा होता है कि उन्होंने ऐसा काम क्यों किया. उन्हें अपने भविष्य को लेकर चिंता भी सताती है. उन्हें उम्मीद नहीं होती कि वह कभी जेल से बाहर भी निकल पाएंगे. लेकिन इन सबके बीच एक ऐसा जेल भी है जो कैदियों के भविष्य के बारे में सोचता है और उनके पुनर्वास के लिए कई तरह की योजनाएं भी बनाता है.
हाल ही में तिहाड़ जेल प्रशासन ने कैदियों के प्लेसमेंट को लेकर एक कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें विभिन्न कंपनियों ने कैदियों की काबलियत को परखा. इस कार्यक्रम में 22 कैदियों ने भाग लिया जिसमें सभी कैदियों को नौकरी मिल गई. ये कैदी कुछ माह में जेल से बाहर निकलकर समाज की मुख्यधारा में आने वाले हैं. उसके बाद कैदी कंपनियों से संपर्क कर नौकरी पाएंगे. नौकरी मिलने के बाद सभी कैदियों के चेहरे पर मुस्कराहट दिख रही थी.
कैदियों को मिल रहा है बेहतर पैकेज
इन कैदियों को 8 हजार से लेकर 45 हजार रुपये प्रति माह तक की नौकरी की पेशकश की गई है. इनका वार्षिक पैकेज 78 हजार से लेकर 5 लाख रुपये तक का है. आगामी अगस्त में जेल से छूट कर बाहर आने वाले संजय को सबसे महंगा पैकेज मिला है. संजय को 45 हजार रुपये प्रति माह की नौकरी मिली. कैंपस प्लेसमेंट में वेदांता फाउंडेशन, अग्रवाल मूवर्स एंड पैकर्स, रिलेक्सो फुटवियर, फ्रंटलाइन ग्रुप, एबीसी कंस्ट्रक्शन, संगम प्रिटिंग प्रेस, सामुदायिक विकास समिति सहित एक दर्जन से अधिक नामी गिरामी कंपनियों ने हिस्सा लिया.
जेल प्रशासन ने ‘पढ़ो-पढ़ाओ’ कार्यक्रम की शुरुआत की है जिसके तहत पहले जहां जेल में 40 प्रतिशत निरक्षर कैदी थे, अब इनकी संख्या घटकर सिर्फ पांच प्रतिशत रह गई. यह पहली बार नहीं है जब जेल प्रशासन ने इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए हैं इससे पहले भी कैदियों के प्लेसमेंट से संबधित कई सफल कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं. इस तरह के कार्यक्रम ने कई बड़े कैदियों के जीवन को सहारा दिया है और उनके भविष्य को सुरक्षित बनाया.
एक बार किसी अपराधी को सजा मिलने के बाद वह सोच भी नहीं सकता कि वह दुबारा समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकता है. ऐसे में जेल प्रशासन द्वारा किया गया यह काम सच में काबिले-ए-तारीफ है. हम अपराधी को सजा देकर, उसे प्रताड़ित करके कभी भी अपराध से दूर नहीं कर सकते. अगर हम चाहते हैं कि वह अपराध से दूर हो तो इस तरह के कार्यक्रम देश के प्रत्येक जेल में लागू करने चाहिए.
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