पटाखे जलाने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लोग 2 घंटे में ज्यादा से ज्यादा पटाखे जला लेना चाहते हैं लेकिन अब इस 2 घंटे में भी कई लोगों को परेशानी हो सकती है। दरअसल, दिल्ली और एनसीआर के लोगों पर नजर रखने के लिए एक टीम बनाई जा रही है। दिल्ली-एनसीआर में दिवाली के दिन ग्रीन पटाखे और वह भी निश्चित स्थानों पर ही जलाए जा रहे हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए लंबी-चौड़ी टीम बनाई गई है। इस टीम में एमसीडी अफसर, दिल्ली सरकार के रेवेन्यू डिपार्टमेंट के अफसर, पर्यावरण मंत्रालय और सीपीसीबी के अफसरों को शामिल किया गया है। अफसरों को आदेश दिया है कि दिवाली के दिन वे तय स्थानों पर जाकर सुनिश्चित करें कि लोग अन्य किसी भी जगह पर पटाखे नहीं जला रहे हैं। इसी तरह से गुड़गांव, नोएडा, फरीदाबाद में भी वहां के डीएम की अध्यक्षता में टीम बनाई गई है। ऐसे में लोगों को ग्रीन पटाखे जलाए जाने के लिए कहा जा रहा है। अगर आपको अभी तक समझ नहीं आया कि ग्रीन पटाखे है क्या, तो जान लें।
क्या है ग्रीन पटाखे
‘ग्रीन पटाखे’ राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज हैं जो पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं पर इनके जलने से कम प्रदूषण होता है। नीरी एक सरकारी संस्थान है जो वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंघान परिषद (सीएसआईआर) के अंदर आता है।
सामान्य पटाखों की तुलना में इन्हें जलाने पर 40 से 50 फ़ीसदी तक कम हानिकारण गैस पैदा होते हैं।
इनसे जो हानिकारक गैसें निकलेंगी, वो कम निकलेंगी। 40 से 50 फ़ीसदी तक कम। ऐसा भी नहीं है कि इससे प्रदूषण बिल्कुल भी नहीं होगा। पर ये कम हानिकारक पटाखे होंगे। सामान्य पटाखों के जलाने से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फ़र गैस निकलती है, लेकिन उनके शोध का लक्ष्य इनकी मात्रा को कम करना था। ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल होने वाले मसाले बहुत हद तक सामान्य पटाखों से अलग होते हैं। नीरी ने कुछ ऐसे फॉर्मूले बनाए हैं, जो हानिकारक गैस कम पैदा करेंगे।
नीरी ने बनाएं हैं चार तरह के ग्रीन पटाखे
पानी पैदा करने वाले पटाखे
ये पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करेंगे, जिसमें सल्फर और नाइट्रोजन के कण घुल जाएंगे। नीरी ने इन्हें सेफ़ वाटर रिलीजर का नाम दिया है। पानी प्रदूषण को कम करने का बेहतर तरीका माना जाता है। पिछले साल दिल्ली के कई इलाकों में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर पानी के छिड़काव की बात कही जा रही थी।
सल्फर और नाइट्रोजन कम पैदा करने वाले पटाखे
नीरी ने इन पटाखों को STAR क्रैकर का नाम दिया है, यानी सेफ थर्माइट क्रैकर। इनमें ऑक्सीडाइजिंग एजेंट का उपयोग होता है जिससे जलने के बाद सल्फर और नाइट्रोजन कम मात्रा में पैदा होते हैं। इसके लिए खास तरह के केमिकल का इस्तेमाल होता है।
कम एल्यूमीनियम वाले पटाखे
इस पटाखे में सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60 फ़ीसदी तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है। इसे संस्थान ने सेफ़ मिनिमल एल्यूमीनियम यानी SAFAL का नाम दिया है।
अरोमा क्रैकर्स
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