गंगा में अवैध खनन के विरोध में पिछले 68 दिनों से हरिद्वार में अनशन कर रहे हिंदू धार्मिक गुरू स्वामी निगमानंद की मौत हो गई. निगमानंद 34 वर्ष के थे और 19 फरवरी, 2011 से अनशन पर थे. गंगा की रक्षा में एक धार्मिक गुरु की इस तरह हुई मौत से कई सवाल उठ खड़े हुए हैं. कई लोगों ने इसे प्राकृतिक मौत मानने से इंकार करते हुए हत्या की साजिश का आरोप लगाया है तो कुछ का कहना है कि अगर प्रशासन चाहता तो बाबा आज जीवित होते. गंगा जैसी धार्मिक नदी की सुरक्षा के लिए अनशन करने वाले निगमानंद की परवाह मौत से पहले किसी ने नहीं की लेकिन उनकी मौत के बाद उन पर सियासी तलवारें तक खिंच गई हैं.
ब्रह्मलीन स्वामी निगमानंद मातृसदन से जुड़े हुए थे और परमाध्यक्ष के शिष्य थे. संत स्वामी निगमानंद ने 19 फरवरी, 2011 से मातृसदन में अनशन शुरू किया था. मातृसदन पहले भी गंगा की रक्षा के लिए कई बड़े कदम उठा चुकी है. इससे पहले जाने माने पर्यावरणविद् जीडी अग्रवाल ने गंगा पर बन रहे बांधों को लेकर आंदोलन किया था जिसके बाद गंगोत्री क्षेत्र में दो बड़ी बांध परियोजनाओं पर रोक लगा दी गई थी.
निगमानंद इसके पहले भी गंगा के दोहन के ख़िलाफ़ सत्याग्रह कर चुके थे. एक बार तो उनका अनशन 72 दिन और 115 दिनों तक चला था. निगमानंद का कहना था कि त्याग और सत्याग्रह से ही सच्ची लड़ाई लड़ी जा सकती है.
लेकिन इस बार अनशन के 68 वें दिन यानि 27 अप्रैल को स्वामी निगमानंद की तबीयत बिगड़ने पर प्रशासन ने उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया. स्थिति गंभीर होने पर उन्हें दो मई को हिमालयन इंस्टीटयूट जौलीग्रांट अस्पताल रेफर कर दिया. जौलीग्रांट में भी निगमानंद की स्थिति में सुधार नहीं आया और वे कोमा में चले गए. 13 जून की रात को उनकी मौत हो गई.
उनकी मौत के बाद से ही देहरादून में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चालू हो गया है. मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती ने आरोप लगाया कि जौलीग्रांट अस्पताल में निगमानंद को जहर दिया गया और वह स्वामी निगमानंद का पोस्टमार्टम एम्स के डॉक्टरों से कराने की मांग कर रहे हैं. घटना से बेहद भावुक हुए शिवानंद सरस्वती ने तप के बल पर प्राण त्यागने का भी ऐलान किया है. उन्होंने कहा कि सरकार, प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था भ्रष्ट हो चुकी है और गंगा बलिदान मांग रही है और मैं यह बलिदान दूंगा.
गंगा को भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक माना जाता है लेकिन हाल के कुछ समय से गंगा को लोग अपने फायदे के लिए अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं जिसकी वजह से इस पवित्र नदी के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है लेकिन इससे प्रशासन और केंद्र सरकार को कुछ लेना-देना नहीं, और इसी वजह से साधु-संतों को इस समस्या की तरफ ध्यान खींचने के लिए अनशन और आंदोलन जैसे रास्तों को अपनाना पड़ता है. हाल ही में भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबा रामदेव ने भी अनशन किया था लेकिन 9 दिन में ही उनकी हालत इतनी बिगड़ गई कि उन्हें अनशन तोड़ना पड़ा पर निगमानंद ने तो 68 दिन का अनशन कर अपनी जान दे दी. मीडिया ने बाबा रामदेव को तो बहुत मान-सम्मान दिया पर बाबा निगमानंद की पूछ बहुत कम है.
बाबा निगमानंद की मौत के बाद भी लोग उन पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं और उनके उद्देश्य को भूल रहे हैं. यह भारत जैसे धार्मिक देश की कैसी विड़ंबना है कि उसके देश में गंगा जैसी धार्मिक नदी के बचाव में एक धार्मिक गुरु की मौत हो जाती है और जनता और प्रशासन इसे आम घटना समझ चुप बैठी रहती है.
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