लोकपाल बिल के अभियान में लगी अन्ना हजारे की टीम अपने अभियान के साथ-साथ विवादों को भी अपने साथ लेकर चल रही है. अब पिछले रविवार को ही ले लीजिए नोएडा में कोर समिति की बैठक हुई. वहां टीम के सदस्य मुफ्ती शमीम काजमी बैठक छोड़ कर बाहर आ गए. शमीम काजमी ने बैठक से बाहर निकल कर पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि वो टीम अन्ना के अभियान को छोड़ रहे हैं क्योंकि वहां मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है. आगे काजमी ने कहा कि टीम अन्ना के भरोसेमंद सदस्य और आंदोलन के कर्ताधर्ता अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसौदिया पूरे अभियान को अपनी मर्जी के मुताबिक चलाना चाह रहे हैं.
इसके जवाब में टीम अन्ना के सदस्यों ने काजमी द्वारा लगाए गए सभी आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि उन्होंने बैठक के भीतर चल रहे सभी बातों को गुपचुप तरीके से अपने फोन में रिकॉर्ड करने की कोशिश की. उन्होंने इसके लिए अन्ना टीम से आज्ञा भी नहीं ली. आखिर अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार अभियान से शुरू से जुड़ने वाले मुफ्ती शमीम काजमी और टीम अन्ना के बीच ऐसी क्या बात हुई जो जनता की अदालत में मामला उठ खड़ा हुआ.
जनता के जहन में कई सारे सवाल
अगर उन्हें लगता था कि मुसलमानों के साथ अत्याचार हो रहा था तो यह बात काजमी ने पहले क्यों नहीं बताई?
आखिर क्या जरूरत आ पड़ी काजमी को टीम अन्ना के बीच हुई बातचीत को रिकॉर्ड करने की?
क्या इससे पहले टीम अन्ना की सभी बातों को वह रिकॉर्ड करके किसी बाहर के व्यक्ति को सौंपते थे?
क्या उनके पीछे किसी बड़ी शक्ति या पार्टी का हाथ है?
अगर उन्होंने बात को रिकॉर्ड भी किया था तो उसमें ऐसी क्या बात थी कि टीम अन्ना ने उसे डिलीट कर दिया?
कुछ ऐसा ही हादसा पहले भी हुआ
ऐसा नहीं है कि इस तरह की घटना पहली बार हो रही है. इससे पहले भी स्वामी अग्निवेश को टीम अन्ना ने बाहर का रास्ता दिखाया था. अग्निवेश पर यह आरोप था कि वह अन्ना टीम के भ्रष्टाचार संबंधित आंदोलन के खिलाफ बोल रहे थे जिसकी वीडियो क्लिप भी बनी थी.
उसके बाद जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता पीवी राजगोपाल और राजिंदर सिंह भी टीम अन्ना के अंदर निर्णय लेने की प्रक्रिया से काफी असंतुष्ट दिखाई दिए जिसका परिणाम यह हुआ कि वह आज अन्ना के आंदोलन से अलग हो गए हैं.
लेकिन इन सबके बीच जिस तरह से पिछले साल भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ एक विरोध की लहर जगी थी, अन्ना टीम के आंदोलन को एक भारी जनसमर्थन प्राप्त हुआ था वह कहीं न कहीं ठंडी पड़ती नजर आ रही है. अगर इसी तरह से अन्ना टीम के सदस्यों में फूट पड़ती रही तो भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का वजूद समाप्त होने में देर नहीं लगेगी.
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