बीते वर्ष की मई के बाद से देश की स्थिति ही बदली हुई सी लगती है. जहाँ देश के लोगों ने आम चुनावों से पहले एक चायवाले की पूरी कहानी तल्लीनता से सुनी और उसे प्रधानमंत्री बना दिया, वहीं एक चायवाले की कहानी को अमिताभ बच्चन ने अपने ट्विटर खाते पर लोगों के बीच साझा करके उसे मशहूर बना दिया. इसका ये असर हुआ है कि लोगों ने लोक मीडिया पर चुटकुले बनाने शुरू कर दिये जिसमें माता-पिता को इस दुविधा में दिखाया गया कि वो अपने बच्चों को पढ़ायें या चाय बेचने के काम पर लगा दें! खैर, इन चुटकुलों से ध्यान हटाते हुये पढ़ें एक और चायवाले की कहानी जो पूरक परीक्षा देने के बाद भी दसवीं में अनुत्तीर्ण हो गया. लेकिन उसके एक शौक ने उसे हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में प्रसिद्ध कर दिया. उसके शौक ने उसे लोगों का चहेता बना दिया है जिनकी संख्या बढ़ते जा रही है.
इस चायवाले का नाम लीलाधर प्रजापत (शिवम) है. दसवीं अनुत्तीर्ण लीलाधर प्रजापत को लिखने का शौक था. कहानी, चुटकुले और कवितायें लिखते-लिखते उन्होंने गाना लिखना शुरू किया. 18 एलबम में दर्ज हो चुके उनके गाने राजस्थान और हरियाणा में शादी और अन्य खुशी के समारोहों में बड़े चाव से सुने जाते हैं.
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वर्ष 2008 में कथा ‘म्हारी जीण माता री’, ‘गोगाजी महाराज की बिजली’, ‘हरिराम जी की कथा’ नामक वीडियो एलबम के लिये उन्होंने गानें लिखे. एक साल बाद ही उनके लिखे जगदेव कंकाली का तीसरा भाग ‘ताऊ छीलका’, 2010 में ‘गोगाजी रो जन्म’ तथा 2011 में हिंदी में ले उड़ा दिल एलबम में ‘हां कहदे तू’…जैसे गाने लोगों की जुबान पर चढ़े. हरियाणा में प्रचलित ‘बाबो दौड़यो आवै’ एलबम के ‘लाल-लाल ध्वजा तो फरुके असमान’… सहित ‘जिस घर में कीर्तन राम…’ उन्होंने ही लिखें हैं.
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दुकानदारी से मिले फुर्स़त के पलों में वो कुछ न कुछ लिख लेते हैं. मारवाड़ी गीत लिखने के श़ौकीन लीलाधर ने देवी-देवताओं के ऊपर भी गीत लिखे हैं. सच ही है किसी एक परीक्षा में अनुतीर्ण होना जिंदगी में असफल होने के लक्षण नहीं हैं.Next….
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