कहते हैं अगर कोई चीज वक्त पर न मिले तो उसका मिलना या न मिलना एक बराबर होता है. जैसे किसी इंसान की जान अगर पैसों की मोहताजी की वजह से न बच पाए, तो बाद में चाहे उसके परिजनों के पास कितनी भी दौलत क्यों न आ जाए, सब व्यर्थ ही लगता है. बल्कि कभी-कभी तो मन को ये बात कचोटती है कि काश! वक्त पर पैसे मिल जाते. जिंदगी की अनगिनत ऐसी कहानियों में से एक है स्मिता टंडी की कहानी. जिन्होंने अपने दुख को खुद पर हावी न करके, अपने दर्द को दुनिया के लिए दवा बना दिया.
स्मिता के लिए वो दिन किसी सदमे से कम नहीं है जब 2013 में वो पुलिस ट्रेनिंग पर गई और उनके पिता शिव कुमार टंडी बीमार पड़ गए. उनके पास उस वक्त ईलाज के पैसे नहीं थे. स्मिता के पिता शिव कुमार भी एक कांंस्टेबल थे. जिन्हें एक दुर्घटना की वजह से 2007 में रिटायरमेंट दे दिया गया था. आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से उनका ऑपरेशन बड़े अस्पताल में नहीं हो पाया और उनकी मौत हो गई.
स्मिता को अपने पिता की मौत का सदमा लगने से ज्यादा ये बात चुभती थी कि महज चंद रुपयों की वजह से, वो अपने पिता को बचा नहीं पाई. तब से स्मिता ने पैसों की कमी की वजह से मौत की भेंट चढ़ते लोगों की मदद करनी शुरू कर दी. उन्होंने इस काम के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया.
उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर पैसों की कमी से जूझते मरीजों के परिजनों को मदद पहुंचाने का भरोसा दिलाया. साथ ही साल 2014 में उन्होंने एक फेसबुक ग्रुप भी बनाया, जिसमें उन्होंने ईलाज के लिए आर्थिक सहायता के लिए लोगों को अपने साथ जोड़ा. आपको जानकर हैरानी होगी की स्मिता ने खुद के खर्चे से अब तक करीब 100 लोगों का ईलाज करवाया है. छत्तीसगढ़ निवासी स्मिता के फेसबुक पेज को 7 लाख से ज्यादा यूजर्स फॉलो कर रहे हैं…Next
Read More :
यहां पुलिस की इन महंगी कारों में बैठने के लिए लोग होते हैं खुद गिरफ्तार
इतनी बड़ी संख्या में दीमक लगे नोट को देखकर पुलिस के उड़े होश
2 साल बाद इस महिला की असलियत आई सामने, पुलिस हैरान
Read Comments