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यूपीए 2 के नाकामी के सबूत

UPA-II completes 3 years in office, but nothing much to celebrate
बीते आठ साल से यूपीए सरकार भारत पर राज कर रही है. लेकिन इन आठ सालों में यूपीए ने देश को ऐसा कुछ नहीं दिया जिस पर नाज किया जा सके या जनता उनकी सरकार की सराहना करे. देश में लगातार सामने आते घोटाले और भ्रष्टाचार के मामले इस यूपीए सरकार की सारे परतें खोल देती हैं. इस यूपीए सरकार में बहुत सी ऐसी बातें आईं जिससे जनता के सामने उनकी एक नकारात्मक छवि बनी है. तो चलिए आज कुछ ऐसे मुददों की बात करें जिनकी वजह से यूपीए सरकार की बहुत थू-थू हुई है.

Upa 21. मजबूर प्रधानमंत्री: कभी देश के सबसे सफल वित्तमंत्री के रूप में प्रसिद्ध मनमोहन सिंह को सोनिया गांधी ने सीधे मंत्री पद से उठाकर प्रधानमंत्री बना दिया और मनमोहन जी ने भी सोनिया जी के अहसान का बदला अपनी चुप्पी से चुका दिया. हर मौके पर देश इंतजार करता रहा कि प्रधानमंत्री को सख्त कदम लें कुछ सख्त बोलें लेकिन लगता है उनकी आवाज में सख्ती है ही नहीं. मुंबई पर लगातार हमले हुए, देश में आतंकवाद का राज बढ़ा, महिलाओं की इज्जत आबरू सरेआम नीलाम हुई, घोटाले हुए, भ्रष्टाचार हुए लेकिन प्रधानमंत्री चुप रहे. यूपीए सरकार के अंदर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह देश के सबसे नाकाम प्रधानमंत्री के जाने जाएंगे.


2. घोटालों की अजब-गजब कहानी: कॉमनवेल्थ गेम्स हो या आदर्श घोटाला या फिर सभी घोटालों का बाप “2 जी घोटाला” हर मौके पर सरकार की फजीहत हुई. राष्ट्रमंडल खेल आयोजन ने भी सरकार को शर्मिंदा किया. देश की साख बढ़ाने के लिए जुटा यह मेला बेतहाशा लूट का खेल साबित हुआ. प्रधानमंत्री को खुद लगाम थामनी पड़ी तो विवाद के दाग पीएमओ की तरफ बढ़ गए. यह एक अनोखा आयोजन था जिसमें खेल खत्म होते ही आयोजक जेल में थे. 2जी के मुद्दे पर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और गृह मंत्री पी चिदंबरम की तकरार जगजाहिर है.


3. सीएजी ने लगाई खूब आग: नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानि सीएजी यानि सबसे ताकतवर विपक्ष! यकीनन यूपीए के पिछले तीन साल के दौरान सीएजी विपक्ष ही नहीं, बल्कि सरकार के खिलाफ खड़ी सबसे ताकतवर जांच एजेंसी भी बन गया. सरकार की कमाई व खर्च का हिसाब किताब रखने वाली एक संवैधानिक संस्था ने न केवल मंत्री और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को जेल भेजने की जमीन तैयार की, बल्कि दशकों पुरानी नीतियां को कठघरे में खड़ा कर दिया. 2जी स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ गेम्स, एंट्रिक्स-देवास, केजी बेसिन, कोयला खदान से लेकर एयर इंडिया व उर्वरक सब्सिडी रिपोर्टों की मार से पिछले तीन साल सीएजी बनाम सरकार में बदल गए.


4. आपस में लड़ाई: लोकतंत्र में सरकार सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत पर टिकी होती है लेकिन मनमोहन सरकार के दो मंत्री प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम के बीच अविश्वास चरम तक पहुंच गया. टेबल के नीचे चिपके चुइंगम को जासूसी बग बता कर प्रधानमंत्री से शिकायत कर दी गई. अविश्वास का माहौल देखिए कि पहली बार वित्त मंत्रालय में निजी एजेंसी को जांच के लिए बुलाया गया. 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में तत्कालीन वित्त मंत्री [पी चिदंबरम] की भूमिका पर सवाल से जुड़े एक नोट को लेकर प्रणब और चिदंबरम फिर भिड़ गए. आखिरकार चिदंबरम और वित्त मंत्री को सफाई देनी पड़ी कि उनके बीच कोई विवाद नहीं है.


5. सेनाध्यक्ष से लड़ाई: अनुशासित सेना और सरकार के बीच पाला खिंचना अभूतपूर्व रहा. सेनाध्यक्ष के उम्र विवाद से शुरू होकर यह रक्षा मंत्री एके एंटनी के कार्यालय की जासूसी और अंततः सेना के दिल्ली कूच तक पहुंच गई. दोनों के बीच अविश्वास ऐसा था कि सेना से डरी सरकार उसके साधारण अभ्यास को दिल्ली कूच समझ कर उसे रोकने के उपाय में जुट गई.


6. ममता बनर्जी की तानाशाही: सरकार को पता था कि दिनेश त्रिवेदी का कठोर रेल बजट ममता बनर्जी को रास नहीं आएगा. रेल बजट पेश हुआ और इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि बजट पेश करने के साथ ही रेल मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा और प्रधानमंत्री लाचार खड़े देखते रह गए.


For more about UPA Government click here: 3 years of UPA-2

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