“संविधान (124वां संशोधन) विधेयक, 2019 लोकसभा में पास होना हमारे देश के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण है। यह समाज के सभी तबकों को न्याय दिलाने के लिए एक प्रभावी उपाय को प्राप्त करने में मदद करेगा।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सवर्ण आरक्षण विधेयक लोकसभा में पास होने के बाद ट्वीट करके इसकी जानकारी दी। लोकसभा में सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए लाया गया संविधान (124वां संशोधन) विधेयक पारित हो गया है।
लगभग पाँच घंटे की चर्चा के बाद मंगलवार रात को विधेयक पर मतदान हुआ। समर्थन में 323 मत और विरोध में केवल 3 मत डाले गए।
सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण देने पर दो मत देखने को मिल रहे हैं, जहां एक तरफ इसे समानता के आधार पर सही कदम बताया जा रहा है, वहीं दूसरे मत को मानने वाले लोग इसे अर्थहीन बता रहे हैं। बहरहाल, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आरक्षण देने की मांग उठी हो बल्कि इससे पहले भी 1991 में ऐसा प्रस्ताव लाया जा चुका है।
We are resolutely committed to the principle of ‘Sabka Saath, Sabka Vikas.’
It is our endeavour to ensure that every poor person, irrespective of caste or creed gets to lead a life of dignity, and gets access to all possible opportunities.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 8, 2019
1991 में भी लाया जा चुका है प्रस्ताव
अब तक भारत के संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। यही वजह रही कि 1991 में जब पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव किया था तो सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय पीठ ने उसे खारिज कर दिया था। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा था कि “संविधान में आरक्षण का प्रावधान सामाजिक गैर-बराबरी दूर करने के मकसद से रखा गया है, लिहाजा इसका इस्तेमाल गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तौर पर नहीं किया जा सकता”।
The passage of The Constitution (One Hundred And Twenty-Fourth Amendment) Bill, 2019 in the Lok Sabha is a landmark moment in our nation’s history.
It sets into motion the process to achieve an effective measure that ensures justice for all sections of society.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 8, 2019
इस आधार पर किया जा चुका है खारिज
इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के नाम से चर्चित इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना संविधान में वर्णित समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है। अपने फैसले में आरक्षण के संवैधानिक प्रावधान की विस्तृत व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- “संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में आरक्षण का प्रावधान समुदाय के लिए है, न कि व्यक्ति के लिए। आरक्षण का आधार आय और संपत्ति को नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान सभा में दिए गए डॉ। आंबेडकर के बयान का हवाला देते हुए सामाजिक बराबरी और अवसरों की समानता को सर्वोपरि बताया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले की रोशनी में राजस्थान, गुजरात, हरियाणा जैसे राज्यों की सरकारों के इसी तरह के फैसलों को उन राज्यों की हाई कोर्ट ने भी खारिज किया।
फिलहाल, राज्यसभा में इस मुद्दे पर बहस चल रही है और पूरे देश की नजर बहस के नतीजे पर टिकी है…Next
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