Menu
blogid : 314 postid : 1389935

महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में क्यों हुई थी हिंसा, कौन हैं वो मानवाधिकार कार्यकर्ता जिन पर हुई पुलिस की कार्रवाई

पुणे पुलिस ने मंगलवार को देश के अलग-अलग हिस्सों में छापे मारे हैं। इसके पीछे पुलिस ने कोई खास वजह नहीं बताई है। पुलिस ने सिर्फ इतना ही कहा है कि यह इस साल जनवरी में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा की जांच का हिस्सा है। ऐसे में कई लोगों में इस हिंसा से जुड़े पूरे मामले को जानने की उत्सुकता बढ़ गई है। वहीं हिंसा के शक में जिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर पुलिसिया कार्रवाई की गई है, उनके बारे में भी बहुत कम लोग जानते हैं।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal29 Aug, 2018

भीमा कोरेगांव हिंसा क्या है?
भीमा कोरेगांव महाराष्ट्र के पुणे जिले में है। इस छोटे से गांव से मराठा इतिहास जुड़ा है। 200 साल पहले यानी 1 जनवरी, 1818 को ईस्ट इंडिया कपंनी की सेना ने पेशवा की बड़ी सेना को कोरेगांव में हरा दिया था। पेशवा सेना का नेतुत्व बाजीराव II कर रहे थे। बाद में इस लड़ाई को दलितों के इतिहास में एक खास जगह मिल गई। बीआर अम्बेडकर को फॉलो करने वाले दलति इस लड़ाई को राष्ट्रवाद बनाम साम्राज्यवाद की लड़ाई नहीं कहते हैं। दलित इस लड़ाई में अपनी जीत मानते हैं। उनके मुताबिक इस लड़ाई में दलितों के खिलाफ अत्याचार करने वाले पेशवा की हार हुई थी।
हर साल जब 1 जनवरी को दुनिया भर में नए साल का जश्न मनाया जाता है उस वक्त दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगांव में जमा होते है। वो यहां ‘विजय स्तम्भ’ के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं। ये विजय स्तम्भ ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस युद्ध में शामिल होने वाले लोगों की याद में बनाया था। इस स्तम्भ पर 1818 के युद्ध में शामिल होने वाले महार योद्दाओं के नाम अंकित हैं। वो योद्धा जिन्हें पेशवा के खिलाफ जीत मिली थी।

 

 

इस साल जनवरी में भड़की थी हिंसा
साल 2018 इस युद्ध का 200वां साल था। ऐसे में इस बार यहां भारी संख्या में दलित समुदाय के लोग जमा हुए थे। जश्न के दौरान दलित और मराठा समुदाय के बीच हिंसक झड़प हुई थी। इस दौरान इस घटना में एक शख्स की मौत हो गई जबकि कई लोग घायल हो गए थे। इस बार यहां दलित और बहुजन समुदाय के लोगों ने एल्गार परिषद के नाम से शनिवार वाड़ा में कई जनसभाएं की। शनिवार वाड़ा 1818 तक पेशवा की सीट रही है। जनसभा में मुद्दे हिन्दुत्व राजनीति के खिलाफ थे। इस मौके पर कई बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाषण भी दिए थे और इसी दौरान अचानक हिंसा भड़क उठी।

 

जिन पर हुई थी कार्रवाई
इस दौरान भारत के पांच प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है। इनमें सुधा भारद्वाज, स्टेन स्वामी, गौतम नवलखा, वरवर राव, वरनॉन गोंज़ाल्विस और अरुण फरेरा शामिल हैं। पांचों को देश के अलग-अलग शहरों से गिरफ्तार किया गया।

सुधा भारद्वाज
सुधा भारद्वाज एक वकील और ऐक्टिविस्ट हैं। वो दिल्ली के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में गेस्ट फ़ैकल्टी के तौर पर पढ़ाती हैं। सुधा ट्रेड यूनियन में भी शामिल हैं और मज़दूरों के मुद्दों पर काम करती हैं।

स्टेन स्वामी
पुलिस ने रांची के 80 वर्षीय जाने-माने सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी के घर पर भी छापे मारे हैं। स्वामी एक ईसाई पादरी हैं जिन्होंने अरसे से चर्च से दूरी बनाई हुई है

वरनॉन गोंजाल्विस
मुंबई में रहने वाले वरनॉन गोंज़ाल्विस लेखक-कार्यकर्ता हैं। वो मुंबई विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडलिस्ट हैं और मुंबई के कई कॉलेजों में कॉमर्स पढ़ाते रहे हैं। उन्हें 2007 में अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट के तहत गिरफ़्तार किया गया था। वो छह साल तक जेल में रहे थे।

अरुण फरेरा
मुंबई के बांद्रा में जन्मे अरुण फ़रेरा मुंबई सेशंस कोर्ट और मुंबई हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं। वो अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट और देशद्रोह के अभियोग में चार साल जेल में रह चुके हैं।

वरवर राव
वरवर पेंड्याला राव वामपंथ की तरफ़ झुकाव रखने वाले कवि और लेखक हैं। वो ‘रेवोल्यूशनरी राइटर्स असोसिएशन’ के संस्थापक भी हैं।….Next

 

Read More :

पतंजलि का मैसेजिंग एप किम्भो की होगी वापसी, 27 अगस्त से फिर से होगा शुरू

बारिश-लैंडस्लाइड ने मचाई हिमाचल प्रदेश में भारी तबाही, 5 मौतें और कई हाइवे हुए बंद

177 देशों से भी ज्यादा अमीर हुई एप्पल कंपनी, जानें कितनी है दौलत

 

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh