शारदा चिटफंड घोटाले मामले में सीबीआई की एक टीम कोलकाता स्थित पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के आवास पर पहुंची। सीबीआई की टीम को पुलिसकर्मियों ने बाहर ही रोक दिया। जिसके बाद दोनों के बीच हाथापाई की खबर सामने आई। सीबीआई ने राजीव कुमार को हिरासत में लिया और कुछ घंटों बाद रिहा भी कर दिया। इसके कुछ ही देर बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा। इस पूरे प्रकरण में ज्यादातर लोगों के मन में एक सवाल उठ रहा है कि राजीव कुमार कौन हैं, जिनके सपोर्ट में ममता बनर्जी मोदी सरकार से भिड़ गई।
कौन हैं राजीव कुमार
1989 बैच के आईपीएस अधिकारी राजीव कुमार विधाननगर के पुलिस आयुक्तर और कोलकाता पुलिस के स्पेेशल टॉस्कर फोर्स के चीफ रह चुके हैं। पश्चिम बंगाल कैडर के आईपीएस अधिकारी राजीव कुमार यूपी के चंदौसी के रहने वाले हैं। उन्होंरने आईआईटी रुड़की से कंप्यूआटर साइंस में इंजिनियरिंग की पढ़ाई की थी। टेक्नो फ्रेंडली राजीव कुमार ने अपनी पढ़ाई का भरपूर इस्तेसमाल अपने काम में किया।
मामले में क्यों आया राजीव का नाम
राजीव कुमार की गिनती सीएम ममता बनर्जी के करिबियों में की जाती है। राजीव कुमार ने 2013 में सारदा चिटफंड घोटाले मामले में राज्य सरकार द्वारा गठित एसआईटी के प्रमुख थे। उनके ऊपर जांच के दौरान गड़बड़ी करने के आरोप लगे हैं। बतौर एसआईटी प्रमुख राजीव कुमार ने जम्मू कश्मीर में सारदा के चीफ सुदीप्त सेन गुप्ता और उनके सहयोगी देवयानी को गिरफ्तार किया था। जिनके पास से डायरी मिली थी। ऐसा कहा जाता है कि इस डायरी में चिटफंड से रुपये लेने वाले नेताओं के नाम थे। राजीव कुमार पर इसी डायरी को गायब करने आरोप लगा है। कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने राजीव कुमार को आरोपी बनाया था।
क्या है शारदा चिट फंड मामला
पश्चिम बंगाल का चर्चित चिटफंड घोटाला 2013 में सामने आया था। कथित तौर पर तीन हजार करोड के इस घोटाले का खुलासा अप्रैल 2013 में हुआ था। आरोप है कि शारदा ग्रुप की कंपनियों ने गलत तरीके से निवेशकों के पैसे जुटाए और उन्हें वापस नहीं किया। इस घोटाले को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार पर सवाल उठे थे। चिट फंड एक्ट-1982 के मुताबिक चिट फंड स्कीम का मतलब होता है कि कोई शख्स या लोगों का समूह एक साथ समझौता करे। इस समझौते में एक निश्चित रकम या कोई चीज एक तय वक्त पर किश्तों में जमा की जाए और तय वक्त पर उसकी नीलामी की जाए। जो फायदा हो बाकी लोगों में बांट दिया जाए। इसमें बोली लगाने वाले शख्स को पैसे लौटाने भी होते हैं।
नियम के मुताबिक ये स्कीम किसी संस्था या फिर व्यक्ति के जरिए आपसी संबंधियों या फिर दोस्तों के बीच चलाया जा सकता है लेकिन अब चिट फंड के स्थान पर सामूहिक सार्वजनिक जमा या सामूहिक निवेश योजनाएं चलाई जा रही हैं। इनका ढांचा इस तरह का होता है कि चिट फंड को सार्वजनिक जमा योजनाओं की तरह चलाया जाता है और कानून का इस्तेमाल घोटाला करने के लिए किया जाता है…Next
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