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35 साल बाद चंद्रग्रहण का ऐसा संयोग, जानें क्‍या है ‘सुपर ब्‍लू ब्‍लड मून’

साल का पहला चंद्रग्रहण आज यानी 31 जनवरी को लग रहा है। भारत में चंद्रग्रहण शाम 5:18 से लेकर 8:41 बजे तक दिखेगा। वैसे तो हर साल चंद्रग्रहण लगता है, लेकिन इस साल का चंद्रग्रहण बहुत खास है। एशिया में 35 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है, जब ब्लू मून, ब्लड मून और सुपर मून एक साथ दिखेगा। इस तरह का संयोग एशिया में 30 दिसंबर, 1982 को बना था। आम दिनों में दिखने वाले चंद्रमा के मुकाबले यह काफी चमकीला और बड़ा होगा। दावा है कि पूर्णिमा के चांद की तुलना में यह 30 फीसदी ज्यादा चमकीला और करीब 14 फीसदी बड़ा होगा। जाहिर सी बात है कि मन में सवाल उठता होगा कि ‘सुपर ब्लू ब्लड मून’ है क्‍या। आइये आपको बताते हैं क्‍या है ‘सुपर ब्लू ब्लड मून’।


super blue blood moon


सुपर मून


supermoon


सुपर मून उस स्थिति में होता है, जब चंद्रमा और पृथ्वी के बीच की दूरी घटती है और पृथ्वी सूर्य एवं चंद्रमा के बीच आ जाती है। इस स्थिति को सुपर मून कहा जाता है। इस स्थिति में चंद्रमा 14 फीसदी ज्यादा बड़ा और चमकीला दिखता है।


ब्लू मून


Blue Moon1


इस स्थिति में पूर्ण चंद्रमा दिखता है, लेकिन चंद्रमा के निचले हिस्से से नीला प्रकाश निकलता दिखेगा। इसे ब्लू मून कहा जाता है। माना जाता है कि अगला ब्लू मून 2028 और 2037 में दिखेगा।


ब्लड मून


blood moon1


इस स्थिति में पृथ्वी की छाया पूरे चंद्रमा को ढंक लेती है, लेकिन सूर्य की कुछ किरणें चंद्रमा तक पहुंचती हैं। जब सूर्य की किरणें चंद्रमा पर गिरती हैं, तो यह लाल दिखता है। इसी कारण इसे ब्लड मून कहा जाता है। ऐसा ‘स्कैटरिंग’ के सिद्धांत के कारण होता है। सूरज की किरणें जब धरती के वातावरण से होकर गुजरती हैं, तो वातावरण में मौजूद कणों के कारण किरणों के नीले, वायलेट रंग अपने आप फिल्टर हो जाते हैं और वेवलेंथ ज्यादा होने के कारण सिर्फ लाल और ऑरेंज कलर धरती के वातावरण से गुजरकर चांद के पास तक पहुंच पाता है।


वैज्ञानिकों को हो सकता है ये फायदा


blood moon2


पूरी तरह पृथ्वी से ढंक जाने के कुछ घंटों बाद एक बार फिर चांद सूरज की किरणों की जद में आएगा। यानी कुछ ही घंटों के अंतराल में चांद पर ‘बेहद सर्द’ से ‘बेहद गर्म’ जैसा माहौल होगा। ऐसे में वैज्ञानिकों को यह समझने का मौका मिलेगा कि चांद की जमीन को अगर अचानक बिलकुल ठंडा कर दिया जाए तो क्या होगा? इससे चांद की मिट्टी और उसकी जमीन के बारे में जानकारी जुटाई जा सकेगी। समझा जा सकेगा कि कैसे सालों में चांद बदल रहा है। ऐसी घटना से वैज्ञानिकों को चांद के मौसम को भी समझने का पूरा मौका मिल सकेगा…Next


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