लड़कियों को मारने की प्रथा आज भी स्वीकृत है. कई जगह कन्याओं को गर्भ में ही मार दिया जाता है तो कहीं पैदा होने के बाद उन्हें मौत की आगोश में सुला दिया जाता है. वजह बस इतनी कि हमारा समाज आज भी लड़कियों को एक बोझ समझता है और चाहता है कि जल्द से जल्द इस बोझ से उसका पीछा छूटे. मर्दवादी समाज की यह मानसिकता बहुत पुरानी है लेकिन अब खबर यह है कि कन्याओं को अपने रास्ते से हटाने में विश्वास रखने वाले पुरुषों का अस्तित्व ही कुछ सालों बाद समाप्त हो जाएगा.
ऑस्ट्रेलिया की सबसे प्रख्यात वैज्ञानिक प्रोफेसर जेनी ग्रेव्स ने एक ऐसी खोज को अंजाम दिया है जिसके अनुसार आने वाले पचास लाख सालों में पुरुष का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा. धरती पर अगर कोई रहेगा तो वह हैं सिर्फ महिलाएं, वे महिलाएं जिनके स्वतंत्र अस्तित्व को इन्हीं पुरुषों द्वारा स्वीकार नहीं किया जा रहा है. जेनेटिक्स वैज्ञानिक ग्रेव्स का कहना है कि पुरुष के अस्तित्व की समाप्ति से जुड़ी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और आने वाले समय में यह पूरी हो जाएगी.
‘हेराल्ड सन’ में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार कैनबेरा यूनिवर्सिटी में व्यवहारिक प्राकृतिक विज्ञान की रिसर्चर जेनी ग्रेव्स द्वारा की गई इस खोज के अनुसार यह बात सामने आई है कि मानव जाति में पुरुषों के जनक वाई क्रोमोजोम्स मे मौजूद आनुवांशिक गुण समय के साथ-साथ कमजोर होते जा रहे हैं और सदियों के अंतराल के बाद इनकी गुणवत्ता और संख्या में कमी आती जा रही है. जिसके आधार पर यह स्थापित किया गया है कि आने वाले सालों में पुरुष जाति पूरी तरह विलुप्त हो जाएगी.
जेनी का यह कहना है कि खुद को सीमित दायरे में रखने वाले समूहों में पुरुषों के लिए आने वाले इस संकट की आहट सुनी जा सकती है. जाहिर है जेनी ग्रेव्स का यह शोध प्रकृति के विकास और उसके मौलिक सिद्धांतों को पलट कर रख देने वाला है. पुरुष जाति पर मंडरा रहा यह संकट सृष्टि के लिहाज से भी बहुत घातक सिद्ध हो सकता है क्योंकि वाई क्रोमोजोम्स होते भी पुरुष शरीर के अंदर ही हैं.
उल्लेखनीय है कि महिलाओं के जनक एक्स क्रोमोजोम्स महिला और पुरुष दोनों के शरीर में पाए जाते हैं जबकि पुरुषों के जनक वाई क्रोमोजोम्स सिर्फ पुरुष शरीर में ही पाए जाते हैं. इसका अर्थ यह है कि अगर महिला बेटे को जन्म देने में सफल नहीं हो पाती है तो इसका कारण संबंधित पुरुष ही होता है, ना कि महिलाएं जिन्हें बेटी के जन्म के लिए दोषी ठहराया जाता है.
यह संकट सिर्फ क्रोमोजोम्स का ही नहीं बल्कि पुरुषों के अस्तित्व का संकट है. उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि जब प्रकृति की शुरुआत हुई थी तब एक्स और वाई दोनों क्रोमोजोम्स की संख्या बराबर हुआ करती थी लेकिन समय बीतने के साथ-साथ वाई क्रोमोजोम्स की संख्या और उनकी गुणवत्ता कम होती गई और आज लाखों वर्षों बाद यह संख्या घटकर बस 100 रह गई है. इन सौ क्रोमोजोम्स में वह जीन (एसआरवाई) भी शामिल हैं जिसे मेल मास्टर स्विच भी कहा जाता है. यही वह जीन है जिससे निर्धारित होता है कि महिला के गर्भ में पल रहा शिशु लड़का है या लड़की. वाई क्रोमोजोम्स की घटती संख्या के अलावा एक दुखद तथ्य यह भी है कि जहां महिलाओं में दो एक्स क्रोमोजोम होते हैं वहीं पुरुषों में एक ही वाई क्रोमोजोम होता है जो अब कमजोर पड़ता जा रहा है.
यह कहना गलत नहीं होगा कि भले ही महिलाएं पुरुषों के आधिपत्य वाले समाज में अपना स्वतंत्र अस्तित्व ना ढूंढ़ पा रही हों लेकिन प्राकृतिक तौर पर वह अस्तित्व की इस लड़ाई को जल्द ही जीतने वाली हैं.
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