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आखिर क्यों बर्दाश्त नहीं हैं बेनी को मुलायम

beni prasad vermaबात-बात पर बयानी बम फोड़ने वाले कांग्रेस पार्टी के नेता और केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा लगता है कि अपना सब कुछ त्याग देंगे लेकिन समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के खिलाफ बोलना नहीं छोड़ेंगे. खबर है कि बेनी प्रसाद बर्मा ने कांग्रेस पार्टी छोड़ने की धमकी दी है. कारण साफ है कांग्रेस उन्हें मुलायम सिंह यादव के विरोध में न बोलने की हिदायत दे रही है. वैसे बेनी ने कभी ऐसी हिदायतों को नहीं माना है.


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गौरतलब है कि हर बार की तरह कांग्रेस मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में एक कार्यक्रम में कहा कि “मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं. लेकिन उन्हें पहले प्रधानमंत्री के घर पर झाड़ू देने वाले की नौकरी पाने की कोशिश करनी चाहिए”.


राजनीतिक हैसियत को देखें तो बेनी ने कभी अपने आप को दूसरे से कम नहीं आंका खासकर मुलायम सिंह यादव से. तभी जब भी उन्हें मौका मिलता है मुलायम सिंह यादव के खिलाफ कुछ न कुछ उगलते रहते हैं. पिछले दिनों बेनी प्रसाद वर्मा ने गोंडा में एक विवादित बयान देते हुए मुलायम सिंह यादव पर आतंकियों को संरक्षण देने का गंभीर आरोप लगाया था जिस पर समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह की तरफ से कड़ी आपत्ति जताई गई थी.


इससे पहले भी बेनी प्रसाद वर्मा समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह पर निशाना साध चुके हैं. पिछले साल नवंबर में यूपी सरकार पर निशाना साधते हुए बेनी ने कहा कि सरकार मुस्लिम लड़कियों को शादी और पढ़ाई के लिए 30 हजार रुपये देने की योजना चला रही है. सरकार ऐसा 95 फीसदी अनुसूचित जाति, 25 फीसदी पिछड़ों और 10 फीसदी सामान्य वर्ग के लोगों को दरकिनार करके कर रही है. सपा से संबंध खराब न हो इसलिए शुरू से ही इन सारे बयानों से कांग्रेस ने अपने आप को अलग-थलग किया है.


वैसे बेनी प्रसाद शुरु से ऐसे नहीं थे. उनकी और मुलायम सिंह यादव की दोस्ती तीन दशक  पुरानी रही है. वह उन नेताओं में से हैं जो न सिर्फ समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे बल्कि वे लंबे समय तक सपा में नंबर दो की हैसियत भी रखते थे. कुछ समय तक आर्य समाज और गन्ना संगठनों से जुड़े रहने वाले बेनी को जाने-माने समाजवादी नेता रामसेवक यादव राजनीति में लाए. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर उन्होंने पहली बार 1974 में बारांबकी के दरियाबाद से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते. बाद में मुलायम सिंह यादव के साथ चौधरी चरण सिंह के संरक्षण में कुर्मी समुदाय से आने वाले बेनी ने अपनी पहचान एक मजबूत और जुझारू नेता के रूप में बना ली.


उत्तर प्रदेश में बेनी प्रसाद वर्मा और मुलायम सिंह यादव शुरुआत से ही समाजवादी छतरी के तले कंधे से कंधा मिलाकर काम करते रहे हैं. दोनों के बीच बेहद मधुर और पारिवारिक संबंध रहे हैं. बेनी तो अपने दोस्त मुलायम को लेकर काफी वफादार भी थे. जानकारों की मानें तो जब 1989 में जनता दल की उत्तर प्रदेश में सरकार बनी तब मुख्यमंत्री पद के लिए अजीत सिंह और मुलायम सिंह यादव दोनों ने अपनी-अपनी दावेदारी ठोंकी. उस समय इस मामले का कोई हल नहीं निकला. तब विधायकों की वोटिंग कराई गई जिसके बाद बेनी ने मुलायम के समर्थन में बड़ी संख्या में विधायकों को खड़ा कर दिया.


दोनों के मधुर संबधों में खटास उस समय आई जब 1992 में मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी नामक एक नए दल के गठन की बात की. तब बेनी नहीं चाहते थे कोई नई पार्टी बनाई जाए बल्कि उनका मानना था कि हमें कांग्रेस में शामिल हो जाना चाहिए लेकिन मुलायम ने यहां हठधर्मिता का परिचय दिया. तब यह टीस बेनी प्रसाद के अंदर घर कर गई थी. 1996 में सपा से अमर सिंह के जुड़ने के बाद यह और बढ़ गई. कहा जाता है कि बेनी प्रसाद अमर सिंह के तौर-तरीकों से न सिर्फ असहमत थे बल्कि बेहद चिढ़ते भी थे. पार्टी में अपना प्रभाव कम देख बेनी धीरे-धीरे कांग्रेस की तरफ मुड़ने लगे. 2007 में समाजवादी पार्टी से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी पार्टी भी बनाई थी लेकिन कामयाबी न मिलने के बाद वह 2009 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए.


वैसे बेनी प्रसाद पार्टी बदलने में भी माहिर हैं. वह अपनी सहूलियत के अनुसार पार्टी को छोड़कर किसी दूसरे पार्टी का हाथ थामने के लिए जाने जाते हैं. उनके ही करीबी और समाजवादी विचारक राजनाथ शर्मा कहते हैं कि बेनी छल कपट की राजनीति में पूरी तरह से पारंगत हैं. बात 1975 की है जब पूरे देश में आपातकाल लगाया गया था. उस समय बेनी ने जेल जाने से बचने के लिए समाजवादी का साथ छोड़कर कांग्रेस से हाथ मिला लिया था.


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