आखिरकार लोकसभा में बहुत विवादित और बहुप्रतिक्षित लोकपाल बिल पास हो ही गया. पर जितना हो हल्ला इसके पास होने से पहले हो रहा था वह इसके पास होते ही एकदम बदल गया. अन्ना हजारे अनशन पर तो बैठ गए लेकिन वह जादू गायब रहा जो कुछ समय पहले रामलीला मैदान में देखने को मिला था. लोकपाल तो पास हो गया पर इसका स्वरूप इस कदर बदला हुआ है कि लगता नहीं कि इससे भ्रष्टाचार मिटेगा.
कमजोर लोकपाल पारित हुआ
सरकार ने विपक्ष के चौतरफा हमलों और सहमति न बनने के बावजूद अपनी मंशा के अनुरूप देर रात तैंतालीस साल के इंतजार के बाद लोकपाल विधेयक को पेश किया और उसे ध्वनि मत से मंजूरी दिलाने में कामयाबी हासिल कर ली, लेकिन लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने वाला उसका प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत न मिल पाने के कारण गिर गया और इसके चलते सरकार की निचले सदन में किरकिरी हुई. मनमोहन सरकार ने विधेयक पेश करने के साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया है कि राज्यों के लिए लोकायुक्तों की नियुक्ति अनिवार्य नहीं होगी. लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक 2011 सरकार द्वारा पेश कुछ महत्वपूर्ण संशोधन (सेना, कोस्ट गार्ड कर्मियों को इसके दायरे से बाहर रखे जाने और पूर्व सांसदों के लिए समय सीमा 7 साल किए जाने) के साथ ही मंजूर हो गया.
सरकार ने दस घंटे तक चली चर्चा के बावजूद विपक्ष के लोकपाल के संवैधानिक स्वरूप के प्रावधानों, सीबीआई की स्वायत्तता जैसे मामलों पर संशोधनों की मांग सिरे से नकार दिया. इसी के साथ व्हिसिल ब्लोअर विधेयक को भी पास करा लिया.
लोकपाल बिल से जुड़ी कुछ जरूरी बातें…
1. कॉर्पोरेट और मीडिया को लोकपाल के तहत लाने वाला लेफ्ट का संशोधन गिरा.
2. पीएम पर केस चलाने के लिए अब लोकपाल बेंच का 2/3 बहुमत काफी होगा. इस पर बीजेपी की मांग मानी गई.
3. लोकपाल के दायरे से सेना बाहर.
4. लोकपाल की नियुक्ति के लिए पैनल में अब राज्यसभा में विपक्ष का नेता शामिल होगा.
5. अल्पसंख्यक आरक्षण पर बीजेपी की मांग ठुकराई. अल्पसंख्यकों को आरक्षण पहले जैसा.
6. राज्यों की मर्जी के बिना लोकायुक्त बनाने के बारे में अधिसूचना जारी नहीं होगी.
7. ग्रुप सी और डी के कर्मचारी लोकपाल के तहत आएंगे.
8. धार्मिक संस्थाओं को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा गया.
अन्ना हजारे बैठे अनशन पर
सरकारी लोकपाल क्या पास हुआ अन्ना हजारे ने तीन दिन के अनशन को मूर्त रूप देकर मुंबई में अपना धरना डाल दिया. संसद से सख्त लोकपाल बनाने के उनके आह्वान का मुंबई समेत देश भर के लोगों में समर्थन तो दिखा, लेकिन उनके साथ मैदान में खूंटा गाड़ कर बैठने वाले इस बार कुछ कम दिखे. शायद इसकी मुख्य वजह मुंबई की भागती जिंदगी है जहां अनशन जैसी चीजों के लिए शायद लोगों के पास समय नहीं है. लेकिन अगर लोगों का समर्थन अन्ना को नहीं मिला तो भी कांग्रेस की मुश्किलें कम नहीं होने वाली.
लोकपाल पर राजनीति
जल्द ही पांच राज्यों में विधानसभी चुनाव होने हैं ऐसे में हर नेता संसद में अपने वोट बैंक तक पहुंचने और उसे साधने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा था. लोकपाल बिल में अल्पसंख्यक आरक्षण पर भी नेताओं ने अपनी राजनीति चमकाई.
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