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क्या अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी के रास्ते अलग हो चुके हैं?

arvind kejriwal and kiran bediकोयला आवंटन घोटाले को लेकर आजकल संसद का पारा बिलकुल गर्म है. विपक्ष प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग के अलावा सत्ता पार्टी की किसी भी चर्चा या तर्क पर बहस नहीं करना चाहता. ठीक उसी तरह कुछ ऐसा ही माहौल संसद के बाहर टीम अन्ना के सदस्यों की बीच देखा जा रहा है. भ्रष्टाचार और जनलोकपाल पर अपनी आवाज बुलंद करने वाली टीम अन्ना के दो अहम सदस्य अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी के बीच मदभेद सामने आने लगे हैं.


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सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के अभियान की प्रमुख सदस्य किरण बेदी ने साफ कर दिया है कि वह अरविंद केजरीवाल द्वारा बनाई जा रही राजनीतिक पार्टी का हिस्सा नहीं होंगी. उन्होंने कहा कि वह किसी अन्य पार्टी का हिस्सा भी नहीं होंगी तथा वह अन्ना के भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान का हिस्सा थीं और आगे भी रहेंगी.


गौरतलब है कि भंग की जा चुकी टीम अन्ना के सदस्य रहे अरविंद केजरीवाल ने कोयला आवंटन से जुड़ी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी सीएजी की रिपोर्ट के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के नेता नितिन गडकरी के घर के घेराव का आह्वान किया था लेकिन किरण बेदी ने इससे असहमति जताते हुए कहा था कि वह सत्ताधारी दल के नेताओं के घर के घेराव के पक्ष में थीं विपक्ष को इससे दूर रखना चाहती थीं. ट्विटर पर किए गए किरण बेदी के इस बयान को उनके भाजपा से औपचारिक तौर पर जुड़ने के रूप में देखा जा रहा था लेकिन बेदी ने इस बात का खंडन किया कि वह किसी भी पार्टी से जुड़ रही हैं.


अब यहां सवाल उठता है कि क्या अन्ना टीम में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है. क्या अरविंद केजरीवाल इतने महत्वपूर्ण हो चुके हैं कि वह टीम के अन्य सदस्यों की बात न सुनें. उन पर पहले से ही कई बार टीम पर यहां तक कि अन्ना हजारे पर भी अपने निर्णय थोपने के आरोप लग रहे थे. अपनी बातों पर आम सहमति न बनना और अपने निर्णय को थोपना उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को दर्शाता है.


सवाल यहां किरण बेदी के उपर भी उठता है कि कैसे आप भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे को दो तराजू पर तौल सकती हैं. jकोयला आंवटन घोटाले को लेकर जितनी केन्द्र की सत्ता पार्टी जिम्मेदार है उतनी ही भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी जिम्मेदार हैं. आप एक ही पार्टी को निशाना बनाकर भ्रष्टाचार के खात्मे के लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकते. यहां किरण बेदी को एक बार फिर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपनी बात स्पष्ट करनी चाहिए.


भ्रष्टाचार के समूल नाश का सपना लिए टीम अन्ना के सदस्य अगर ऐसे ही मतभेद लेकर सामने आते रहे तो जो विश्वास और उम्मीद पिछले साल जनता के बीच जगी थी कहीं उसका ही नाश न हो जाए.


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