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क्या केजरीवाल का यह ‘दांव’ काम आएगा

राजनीति के अखाड़े में हर कोई दांव नहीं लगा सकता खासकर वह पार्टी जिसके पास न तो कोई चुनाव जीतने का अनुभव है और न ही ऐसा कोई खास वर्ग जो उसे सत्ता की चाबी दिला सके. लेकिन सामाजिक आंदोलनों से निकलकर राजनीति की ओर रुख करने वाले आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) इस तरह के दांव को खेल रहे हैं.


arvind kejriwalखबर है कि आम से दिखने वाले अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने नवंबर में होने वाले दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए खुद को तैयार कर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से सीधे मुकाबले की बिसात बिछाते हुए आमने-सामने की लड़ाई का ऐलान कर दिया है. केजरीवाल दिल्ली की उस विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे जिस सीट से शीला दीक्षित लगातार तीन बार जीत कर मुख्यमंत्री बनी हैं.


बोल्ड दिखने के लिए छोटे कपड़े जरूरी नहीं


आम आदमी पार्टी द्वारा आयोजित सम्मेलन में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने कहा ‘अगर वह नयी दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में इस तरह के मुकाबले से डर की वजह से बचकर कहीं और जाती हैं तो मैं भी वहीं से चुनाव लड़ूंगा जहां से वह खड़ी होंगी. इस सम्मेलन में केजरीवाल ने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि पिछले चुनावों में पार्टी ने शीला दीक्षित के खिलाफ कमजोर उम्मीदवार खड़े किए थे जिसकी वजह से मुख्यमंत्री तीसरी बार विधानसभा पहुंची. अरविंद ने तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विजय गोयल को अपने तथा शीला के खिलाफ लड़ने की चुनौती दी.

आपको बता दें कि वर्ष 1998 के चुनाव में शीला दीक्षित ने गोल मार्केट क्षेत्र से बीजेपी के कीर्ति आजाद को 5,667 वोटों से हराया था. पांच साल बाद 2003 में मुख्यमंत्री ने कीर्ति आजाद की पत्नी पूनम आजाद को 12,935 मतों से पराजित किया. परिसीमन के बाद उन्होंने नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया. इस सीट पर उन्होंने भाजपा के विजय जौली को 13,982 वोट से हराकर जीत दर्ज की.


परिवार से इतर कुछ और नहीं


अब सवाल उठता है कि अरविंद ने जो यह दांव खेला है क्या उससे पार्टी को कोई लाभ होगा. जानकार यह मानते हैं कि अरविंद की यह मजबूरी थी कि वह अपने आप को शीला दीक्षित के खिलाफ खड़ा करें. ऐसा करके वह संगठन के कार्यकर्ताओं में जान फूंकने की कोशिश करेंगे जिससे विधानसभा चुनाव में उन्हें लाभ मिलेगा.

एक वजह और भी है कि यदि वह शीला दीक्षित को हराने में कामयाब हो जाते हैं तो इससे उनकी पार्टी और ज्यादा चर्चा में आ जाएगी साथ ही लोकसभा चुनाव के लिए आधार तैयार हो जाएगा. लेकिन इस मुकाबले में यदि वह हार जाते हैं तो उनके साथ-साथ उनकी पार्टी के उस दावे को ठेस पहुंचेगा जिसकी वजह से उन्होंने अपनी पार्टी का निर्माण किया.


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