हर मुसलमान की यह ख्वाहिश होती है कि वह अपने जीवन में एक बार अवश्य हज करने के लिए मक्का-मदीना जाए. सऊदी अरब स्थित जेद्दा तक जाने के लिए भारत सरकार की ओर से प्रत्येक वर्ष भारतीय हज समिति के द्वारा हज के लिए जाने वाले मुसलमान तीर्थयात्रियों को हवाई किराए में सब्सिडी दी जाती है जिसका सारा खर्च स्वयं सरकार एयर इंडिया को अदा करती है. लेकिन हो सकता है जल्द ही सब्सिडी की इस व्यवस्था पर विराम लगाने से पूरा खर्च यात्रियों को ही उठाना पड़े.
बॉंबे हाई कोर्ट के एक फैसले को केन्द्र सरकार ने चुनौती देकर सुप्रीम पहुंचा दिया, जिसमें विदेश मंत्रालय को यह आदेश दिया गया था कि सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी में वीआईपी कोटे के तहत निजी ऑपरेटरों को 11,000 में से 800 हज यात्रियों का प्रबंध करने की अनुमति दी जाए. केन्द्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अल्तमस कबीर और जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की बेंच ने यह आदेश दिया है कि सरकार द्वारा जो सब्सिडी दी जा रही है उसका फायदा उठाकर बहुत से लोग एक बार से ज्यादा हज के लिए चले जाते हैं, जिसका सीधा प्रभाव उन मुसलमानों पर पड़ता है जो एक भी बार हज करने नहीं जा पाए हैं. इसीलिए आगामी दस वर्षों के अंदर यह सब्सिडी समाप्त की जानी चाहिए और ऐसे यात्रियों को प्राथमिकता दी जाए जो पहली बार हज करने जा रहे हैं. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट का यह भी आदेश है कि सरकारी खर्च पर हज के लिए जाने वाले मंत्रिमंडल के सदस्यों की संख्या में भी कटौती की जाए.
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश पूरी तरह निष्पक्ष रहकर, उन मुसलमानों के हित में किया है जो कभी हज करने के लिए नहीं गए. इस्लाम धर्म में हर मुसलमान को एक बार हज पर जाने का निर्देश दिया गया है, लेकिन सरकार की ओर से होती लापरवाही और अनदेखी की वजह से बहुत से लोग धन होने के बावजूद सरकारी सब्सिडी का फायदा उठाकर कई बार हज करने चले जाते हैं जबकि जरूरतमंद लोग इस सहायता का फायदा नहीं उठा पाते. लेकिन भारत की सियासी सरगर्मियों के बारे में हम सभी अच्छी तरह से परिचित हैं इसीलिए इस आदेश पर भी राजनैतिक चादर चढ़ाने की पूरी-पूरी कोशिश की जाने की संभावना है.
Read Comments