अपने तुगलकी फरमानों के लिए देशभर में प्रसिद्ध खाप पंचायतें अब अपने आप को वैधानिक दर्जा दिलवाने की जद्दोजहद में लग गई हैं. हरियाणा के सोनीपत में हुई बैठक में खाप महापंचायत ने केंद्र और राज्य सरकार से खाप को लोक अदालतों का दर्जा देने की मांग की है. उनका मत है कि समाज में ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर खापों का फैसला सर्वमान्य है भले ही इनमें से कुछ फैसले समाज को पीछे ढकेलने वाले क्यों न हो.
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आज जहां देश के कोने-कोने में खाप पंचायत की चौतरफा आलोचना की जा रही है वहीं इन्हें लोक अदालत बनाए जाने की मांग कहां तक सही कहा जा सकती है. कुछ लोगों का मानना है कि यदि खाप पंचायत को लोक अदालत का दर्जा दे दिया जाए तो समाज को मर्यादा में रखकर उसके विकास के बारे में सोचा जा सकता है. किसी भी दूषित संस्कृति से समाज को दूर किया जा सकता है. लेकिन दूसरी तरफ उनकी यह मांग वर्षों से चली आ रही पुरुषवादी वर्चस्व की हिमायत भी करती है जहां पर महिलाओं की स्वतंत्रता लेस मात्र तक नहीं है और अगर है तो जातिवाद, सम्मान के नाम पर हत्या और कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक बुराइयां.
जिस खाप पंचायत के निर्णयों पर लगाम लगाए जाने की बात कही जा रही है अगर उसी को एक वैधानिक संस्था का रूप दे दिया गया तो समाज में एक गैर-परिवर्तनवादी व्यवस्था लागू हो जाएगी. कोई भी सुधार और बदलाव के बारे में सोच भी नहीं सकता. तब समाज का हर व्यक्ति इन खाप पंचायतों को केन्द्र में रखकर अपने निर्णय लेगा. यदि उस निर्णय में किसी की जान भी जाती है तो दोष खाप पंचायत का नहीं बल्कि उस व्यक्ति का होगा जो अपनी जान गवां रहा है.
आज जहां समाज महिलाओं को पुरुषों के समान मानने की दहलीज पर खड़ा है वहां यदि खाप पंचायत को एक लोक अदालत बना दिया जाता है तो महिलाएं दुबारा उसी युग में चली जाएंगी जहां उन्हे बेबसी और दर्द के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा. इनको लोक अदालत का दर्जा देने का मतलब है लोग उस समय संवैधानिक संस्थाओं को नहीं देखेंगे बल्कि अपने न्याय के लिए इन्हीं के द्वार पर चक्कर लगाएंगे. ऐसी स्थिति में अगर कोई इनके न्याय से असंतुष्ट भी होता है तो उसे समाज से अलग-थलग मान लिया जाएगा.
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