26/11 मुंबई हमले में पकड़ा गए एकमात्र आतंकवादी अजमल कसाब को फांसी दिए जाने के बाद सरकार पर यह दबाव बनने लगा कि संसद पर हमले में दोषी करार दिए गए अफजल गुरु को फांसी दी जाए. इसके बाद कई हिंदुत्ववादी संगठनों और अखबारों/चैनलों द्वारा अफजल गुरु को जल्दी से जल्दी फांसी पर चढ़वाए जाने की मुहिम शुरू कर दी गई थी. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने भी इस बार जनता के सेंटिमेंट को भांप लिया था और आखिरकार 12 साल बाद शनिवार 9 फरवरी सुबह आठ बजे अफजल गुरु को फांसी दे दी गई.
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वैसे लोगों की भावनाओं के साथ खेलने वाली केंद्र की यूपीए सरकार के साथ इस बार ऐसा क्या हुआ कि वह इस भावनात्मक मसले को और ज्यादा दिन तक नहीं टाल सकी. जानकारों की मानें तो सरकार खासकर कांग्रेस द्वारा कसाब या फिर अफजल को फांसी दिए जाने के पीछे प्रमुख वजह पार्टी को भविष्य की चिंता सताने की रही थी. देश में इस समय कांग्रेस विरोधी लहर पनप रही है. भ्रष्टाचार, घोटाले तथा ढीले रवैए से कांग्रेस की काफी किरकिरी हुई है. सरकार को इसके बुरे नतीजे अभी से दिखाई देने लग गए थे.
ऐसा माना भी जा रहा था कि कांग्रेस के पास अभी ऐसा कोई मुद्दा नहीं है जिसकी बदौलत वह आगामी चुनाव में जनता के सामने जाए. कैश सब्सिडी योजना जो सरकार की सबसे बड़ी योजना मानी जा रही थी वह भी खटाई में पड़ती हुई दिखाई दे रही थी. इसके अलावा महंगाई, भ्रष्टाचार और आतंकवाद के मुद्दे पर विपक्ष का लगातार हमला करना कांग्रेस को काफी साल रहा था.
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विशेषज्ञों की मानें तो कांग्रेस के पास मुद्दों का अकाल पड़ा हुआ था. वह विपक्ष के राजनीति हमलों को रोक नहीं पा रही थी. मजबूरन अंत में कांग्रेस को वह चाल चलनी पड़ी जिसकी बदौलत वह विपक्ष के वार पर कुछ हद लगाम लगा सकती थी और जनता से सहानुभूति भी पा सकती थी. वैसे कांग्रेस पर पहले से ही उन मुद्दों को खत्म करने का दबाव था, जिन पर भाजपा पार्टी को कठघरे में खड़ा करती रही है.
यह भारत देश है जहां कोई भी बड़े फैसले बिना राजनीति से नहीं लिए जाते. अगर सरकार किसी बड़े मुद्दे पर तत्काल फैसले नहीं लेती तो उसके भी राजनीतिक मायने हैं और वहीं यदि सरकार किसी ऐसे ही मुद्दे पर तत्परता दिखाती है तब भी यह माना जाता है कहीं न कहीं इसमें राजनीतिक फायदा होगा. तभी तो आज कसाब और अफजल जैसे आतंकवादियों को फांसी दिए जाने के बाद भी पक्ष से लेकर विपक्ष तक अपने-अपने तरीके से अपनी पीठ थपथपा रहे हैं.
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