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मोदी के सामने बड़ी हैं चुनौतियां

भारतीय जनता पार्टी में रविवार 9 जून, 2013 का दिन काफी उम्मीद लेकर आया जब गोवा में हुई भारतीय जनता पार्टी की कार्यकारिणी बैठक में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने रविवार को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 2014 चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष घोषित किया. यह उम्मीद उन कार्यकर्ताओं के लिए थी जो यह आस लगाए बैठे थे कि कब उनके चर्चित नेता मोदी को बीजेपी का कप्तान बनाया जाए. जैसे ही यह घोषणा हुई पूरे देश में पार्टी के कार्यकर्ताओं में खुशी की लगर दौड़ उठी. ऐसा लग रहा रहा मानो पार्टी ने 2014 का चुनाव जीत लिया हो और मोदी प्रधानमंत्री बना दिए गए हों.


modi 1क्या करती है चुनाव प्रचार समिति

भाजपा में चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष चुनाव से संबंधित सभी निर्णय लेती है. इसका मुख्य कार्य है चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन करना. समिति का अध्यक्ष ही निर्धारित करता है कि कौन सा उम्मीदवार किसके खिलाफ और कहां से खड़ा होगा. इसके अलावा चुनाव के लिए जितने भी खर्च हो रहे हों उसकी देख रेख भी समिति का अध्यक्ष ही करता है. इसके अलावा छोटे मोटे और भी काम होते हैं जैसे बैनर, पोस्टर बनवाना, कौन सा स्टार प्रचारक कब और कहां चुनाव प्रचार करेगा इसका भी निर्धारण अध्यक्ष करता है.


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वैसे यह पहले से ही निर्धारित था कि नरेंद्र मोदी पार्टी की प्रचार समिति की कमान को संभालेंगे. जिस तरह से उन्होंने गुजरात में तीसरी बार सत्ता हासिल की थी और अपने कुशल चुनाव प्रबंधन की बदौलत पार्टी में एक अलग हैसियत बनाई थी उसके बाद से ही यह कयास लागाए जा रहे थे कि मोदी को आने वाले समय में एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है.

खैर फिलहाल के लिए नरेंद्र मोदी ने जो चाहा था वह तो उन्हें मिल गया लेकिन इसके साथ-साथ कुछ ऐसी चुनौतियां खड़ी कर गए जिसका सामना पार्टी को आने वाले समय में करना पड़ सकता है.


मोदी के सामने चुनौती

मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि अपनी ही पार्टी के विरोधी खेमे को एकजुट करें. पार्टी में ऐसे कई वर्ग उत्पन हो चुके हैं जो यह चाहते नहीं थे कि मोदी को इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जाए. स्वयं पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी इस बात से असहमति जता चुके हैं. पार्टी में ऐसे कई नेता हैं जो खुद को मोदी से बढ़कर मानते हैं इसलिए मोदी को मिलने वाली इतनी जल्दी तरक्की को पचा नहीं पा रहे हैं.


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कौन देगा समर्थन

जब से नरेंद्र मोदी को ऐसे दायित्व देने की बात छेड़ी गई है जिसमें यह लगता है कि आगे चलकर वह प्रधानमंत्री बन जाएंगे तब से एक साये की तरह भाजपा के सहयोगी दल मोदी का निरंतर विरोध कर रहे हैं. इसमें सबसे ऊपर नाम आता है ‘जनता दल यूनाइटेड’ का. जेडी-यू के नेता पहले भी यह धमकी दे चुके हैं कि मोदी के नाम पर भाजपा विचार करती है तो पार्टी अपने पुराने सहयोगी का साथ खो देगी.


अपने घटने जनाधार को बढ़ाना

जिस काम के लिए मोदी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया उसका मुख्य मकसद तो यही है कि कैसे भी करके बीजेपी के जनाधार को बढ़ाया जाए. पार्टी पिछले नौ सालों से सत्ता में नहीं है. बीजेपी को आज तक लोकसभा में पूर्ण बहुमत नहीं मिला. 1999 से अगर देखें तो लगातार बीजेपी का जनाधार घटता जा रहा है. 1999 में बीजेपी को 182 जबकि 2004 में पार्टी के हाथ केवल 135 सीटें ही हाथ लगीं. 2009 में और भी स्थिति खराब हो गई. बीजेपी के हिस्से महज 116 सीटें आई थीं. हाल ही में दक्षिण में अपने एकमात्र गढ़ यानी कर्नाटक से बीजेपी अपनी सत्ता गंवा चुकी है. उत्तराखंड और हिमाचल भी बीजेपी के हाथ से फिसल चुके हैं. यूपी जैसे बड़े राज्य में पार्टी दहाई का आंकड़ा छूने को तरस रही है. मोदी के सामने यही चुनौती है कि घटते जनाधार को दोबारा लोकसभा चुनाव से पहले पटरी पर लाया जाए.


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