लगता है आजकल प्रकृति कुछ ज्यादा ही विनाशकारी मूड में है, तभी तो जापान के बाद अब म्यांमार में भी भूकंप के जलजले ने कई जिंदगियों के दियों को बुझा दिया है. थाईलैंड की सीमा से सटे म्यांमार के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में 24 मार्च की रात को आए तेज भूकंप में कम से कम 60 लोग मारे गए गए और 90 लोग घायल हो गए. भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.8 मापी गई है .
जापान के बाद एशिया के कई हिस्सों में भूकंप के झटके महसूस किए गए. भारत, चीन और पाकिस्तान में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए पर कहीं भी जानमाल की हानि नहीं हुई लेकिन 24 मार्च की रात म्यांमार के लिए संकट की रात बनकर आई.
24 मार्च 2011 को शाम 8.30 बजे के करीब राजधानी रंगून सहित थाईलैंड और लाओस के सीमावर्ती इलाकों में भी भूकंप के मध्यम और कम तीव्रता के झटके महसूस किए गए .
लगातार आ रही प्राकृतिक आपदाओं पर अगर गौर किया जाए तो लगता है यह किसी महाविनाश की आहट है. कहीं माया सभ्यता द्वारा 2012 में दुनिया के अंत की कहानी का इससे कुछ लेना देना तो नहीं. लेकिन अफवाहों पर गौर करने की जरुरत नहीं है. सच्चाई तो यह है कि हमने प्रकृति के साथ जो इतनी ज्यादा छेड़छाड़ की है उसका नतीजा अब निकल रहा है. अगर हमने जल्द ही प्रकृति के साथ सही तालमेल नहीं बैठाया तो हालात और नाजुक हो सकते हैं.
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