पश्चिम बंगाल में शारदा रियल्टी चिट फंड घोटाले ने ममता सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. शारदा के मालिक सुदीप्तो सेन ने पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के 22 नेताओं पर पैसे बनाने के लिये उनका इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. सेन का दावा है कि उन नेताओं द्वारा उन्हें ब्लैकमेल किया जाता था और शारदा रियल्टी की तरफ से हर माह उन्हें 80 लाख रु. दिये जाते थे. इन नेताओं में सेन ने खास तौर पर तृणमूल के नेता और राज्यसभा सांसद कुणाल घोष और संजय बोस का नाम लिया है. दोनों ही नेता सेन के आरोपों को गलत बताते हैं. जहां कुणाल घोष यह कहते हुए पल्ला झाड़ते हैं कि वे कंपनी के मालिक नहीं हैं कि कंपनी किस तरह काम करे यह तय करें, वहीं बोस का बयान है कि यह उनका कारोबारी मामला है और अगर चिट फंड कंपनियां नहीं होंगी तो लोगों को रोजगार कैसे मिलेगा. ममता ने कल इसे उन्हें बदनाम करने की केंद्र की चाल बताई थी पर तृणमूल सूत्रों का कहना है कि पार्टी के कई नेता घोष को हटाए जाने के पक्ष में हैं.
वहीं ममता बनर्जी ने निवेश में धन गंवाने वाले निवेशकों को राहत पहुंचाने के लिये 500 करोड़ के राहत कोष के गठन की घोषणा की है. इसके लिये सिगरेट पर 10 प्रतिशत का टैक्स लगाया जायेगा जिससे फंड के लिये 150 करोड़ रु. एकत्र होंगे. बाकी की राशि अन्य साधनों से जुटाई जाएगी. कलकत्ता उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश श्यामलाल सेन की अध्यक्षता वाले आयोग की सिफारिश पर निवेशकों को कोष से भुगतान किया जाएगा.
इस बीच सुदीप्तो सेन के बारे में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है कि चिट फंड के कारोबार में आने से पहले वह एक नक्सली था और शंकरादित्य सेन के नाम से जाना जाता था. जाने-माने नक्सल नेता चारू मजूमदार से भी उसके रिश्ते थे. यही नहीं 1971-72 में नक्सली गतिविधियों के लिये वह जेल भी गया था.
इसके विरोध में लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है और धरना व विरोध प्रदर्शन जारी हैं. ममता द्वारा इसके लिये केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराये जाने पर केंद्र ने वापस ममता सरकार को ही इसके लिये जिम्मेदार ठहराया है. केंद्र का कहना है कि भारत में चिट फंड ऐक्ट, 1982 के तहत चिट फंड को रेगुलेट किया जाता है. इस कानून के तहत चिटफंड को सिर्फ संबंधित राज्य ही रजिस्टर और रेग्यूलेट कर सकता है. केंद्र ने इस शारदा चिट फंड घोटाले में तृणमूल के नेताओं की भूमिका की भी जांच करवाने की मांग की है.
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