केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवालका निंदाजनक बयान
भारत के केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल की मुसीबतें थमती नज़र नहीं आती हैं. कोयला आवंटन मामले में भारी विरोध के बाद वह एक नए विवाद में घिर गए हैं. अपने जन्मदिन के अवसर पर आयोजित एक कवि सम्मलेन में श्री जायसवाल ने ऐसी टिप्पणी कर दी जिससे वो फिर से विवादों में आ गए. मंच पर खड़े हो सभा को संबोधित करते जायसवाल ने भारतीय क्रिकेट टीम को पाकिस्तान पर जीत हासिल करने की बधाई देने के क्रम को बढ़ाते हुए कहा, “नई-नई जीत और नई-नई शादी का अलग महत्व है.” उन्होंने कहा, ‘जिस तरह समय के साथ जीत पुरानी पड़ती जाती है उसी तरह वक्त के साथ बीवी भी पुरानी होती जाती है और उसमें वह मजा नहीं रह जाता है.’ नई-नई जीत और नई-नई शादी का अलग महत्व है. जिस तरह समय के साथ जीत पुरानी पड़ती जाती है उसी तरह वक्त के साथ बीवी भी पुरानी होती जाती है और उसमें वह मजा नहीं रह जाता है.’ इस टिप्पणी पर महिलाओं के साथ-साथ राजनीतिक पार्टियां भी विरोध कर रही हैं.
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महिलाओं को वस्तु समझते राजनेता
जहां एक तरफ कांग्रेस सरकार महिलाओं के हक़ में बात करती नज़र आती है वहीं केंद्रीय मंत्री का यह आपत्तिजनक बयान कांग्रेस के असली चेहरे से रूबरू करवाता है. महिलाओं के हक़ में बात करने वाले राजनेताओं का असली चेहरा देश के सामने आ ही गया. कोई भी केंद्रीय मंत्री उस पूरी जनता का प्रतिनिधित्व करता है जिस जनता ने उसे इस पद तक पहुंचाया है और वहां से इस तरह की बातों का प्रतिपादन होना भारी क्षोभ और चिंताजनक विषय है. महिलाओं के प्रति इतने अप्रिय शब्दों का प्रयोग करते हुए श्री जायसवाल ने यह साबित कर दिया कि सरकार किस प्रकार की सोच रखती है आम जन के लिए और खासकर महिलाओं के लिए. भारत में जहां महिलाओं को सम्मान से देखा जाता है, उन्हें कई जगहों पर देवी का रूप भी दिया जाता है, उस देश के विशिष्ट मंत्री के इस प्रकार के बयान से काफी लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है. देश के महिला संगठनों ने विवाह के संबंध में केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल की अशोभनीय टिप्पणी की कड़ी आलोचना की और उनके बयान पर कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी का ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश की है.
बहिष्कार की हद तक हो विरोध
सही मायने में इस प्रकार की अशोभनीय टिप्पणी का प्रबल विरोध होना चाहिए. देश में महिलाओं की दयनीय अवस्था को सुधारने के लिए इस प्रकार के बयानों पर जनता को कड़ा रुख अपनाना चाहिए. मौजूदा हालात में मनमौजी तरीके अपनाने वाले नेताओं में इतनी भी तहज़ीब नहीं बची है कि वह समझ सकें कि एक सभा को संबोधित करते हुए उन्हें किन मानकों का पालन करना चाहिए और अगर वो इसमें समर्थ नहीं हैं तो उन्हें अपना पद त्याग देना चाहिए. क्योंकि भारतीय जन मानस ने आपको इसलिए उस पद पर आसीन नहीं किया है कि आप वहां से देशवासियों के प्रति अश्लील और अशोभनीय टिप्पणी करें.
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